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मोक्ष का द्वार कैसे खुलेगा? - हमारे आगमों में नम्रता अथवा विनय की बड़ी महिमा बताई गई है। और तो और इसे धर्म का मूल ही माना गया है । भगवान ने कहा भी है
"विणयओ नाणं, नाणाओ बसणं,
दसणाओ चरणं, चरणाओ मोक्खो ।' ___ अर्थात् विनय से ज्ञान आता है, ज्ञान से जीव-अजीवादि तत्त्वों का बोध होने पर सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है, सम्यक्त्व से आचरण प्राप्त होता है और सम्यक्चारित्र से मोक्ष उपलब्ध होता है । . इस कथन से भलीभाँति सिद्ध होता है कि विनय अथवा नम्रता जीवन का सबसे महत्वपूर्ण गुण है और जिसके अंदर वह होता है वह अन्य गुणों के न होने पर भी महान् कहलाता है।
इसके विपरीत, जिसमें बहुत किताबी ज्ञान हो किन्तु उसके साथ ही साथ अहंकार रूपी महान् दुर्गुण हो, तो वह उसकी समस्त विद्वत्ता पर पानी फेर देता है और उसके लाख चाहवे पर भी महानता उससे कोसों दूर भागती है।
वस्तुतः अगर सभी व्यक्ति कहें कि मैं ही नेता हूं, मैं ही पंडित हूं या कि मैं ही महान् हूं, तो कैसे काम चल सकता है ?
पंच महाभूतों का झगड़ा हमारे शरीर में पंच महाभूत माने जाते हैं—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश । कहते हैं कि एक बार इन सबमें विवाद उठ खड़ा हुआ। सभी का कहना था कि मैं ही मुख्य हूं, मेरे न होने पर तुम में से किसी का भी काम नहीं चल सकता । सर्वप्रथम वायु ने अपना बड़प्पन बताया-'मेरे होने पर ही तुम लोगों की कुशल है, अन्यथा तुम सबकी कीमत ही क्या है ?
वायु का कयन ठीक है, क्योंकि जब तक श्वास है तभी तक शरीर टिकता है । इसे लक्ष्य में रखते हुए संत कबीर ने कहा है
दौड़ बे दौड़, जब लग उजाला तब लग दौड़। अंधेरा पड़ेगा, बजा कुछ न चलेगा। एक सांस जाता है, तीन लोक का मोल,
कहना था सो कह गया, अब क्या वजाऊँ ढोल ? ___ अर्थात्- "हे प्राणी ! जब तक शरीर में सांस यानी प्राणवायु है तब तक परमार्थ के मार्ग पर दौड़ चल अर्थात् जो कुछ धर्माराधना और तप-त्याग कर सके तो करले । अन्यथा एक दिन आत्म-ज्योति के इस शरीर से निकल जाने पर
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