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आनन्द-प्रवचन भाग-४ और वह काँटा उसके गले में फंस जाता है। मछलीमार कांटे से बंधी हुई डोरी को ऊपर खींच लेता है और मुड़े हुए कांटे से मछली का गला फट जाता है और वह मर जाती है। ___ मछली के समान ही अज्ञानी व्यक्तियों की दशा होती है। वे इन्द्रिय-सुखों के लालच में आकर उन्हें भोगते हैं किन्तु परिणाम यह होता है कि कर्म उन्हें पकड़ लेते हैं और अनंतकाल तक सताते हैं । हिन्दी भाषा के एक कवि ने भी कहा है
नित भटकता मैं फिरा, संसार में सुख ना मिला। बस, जिधर दौड़ा उधर से, सुख के बदले दुख मिला,
अब तो गोदी में अपनी बिठा लो मुझे, स्वामी! चरणों का दास बना लो मुझे,
सच्चा मुक्ति का मार्ग दिखा दो मुझे ॥ यहां भी एक जिज्ञासु कर्म-जनित दुखों से पीड़ित होकर भगवान से प्रार्थना कर रहा है कि में सुख की खोज में इस संसार में सदा भटकता रहा। किन्तु कहीं भी सच्चा सुख हासिल नहीं हुआ । सुख के बदले उलटा दुख ही मुझे मिला है। ____ बंधुओ, आप सोचेंगे कि देवगति तो बड़ी अच्छी है क्योंकि स्वर्ग पाने के सभी इच्छुक होते हैं । वहाँ कष्ट है ? पर आपको जानना चाहिए कि यद्यपि कुछ काल तक देवता सुखोपभोग करते हैं। पर साथ ही अन्य देवताओं के ऐश्वर्य से जलते हैं और आपस में झगड़ते भी हैं।
इसके अलावा जब उनका मृत्युकाल समीप आता है तो उन्हें घोर दुःख होता है और पश्चाताप भी । दुख इसलिये होता है कि अवधिज्ञान के कारण वे जानते हैं कि यहाँ से कहाँ जाएंगे। उन्हें माता के गर्भ में रहना पड़ेगा, देवलोक में दुर्गन्धि नहीं है किन्तु गर्भावस्था में नौ महीने तक वहाँ की गन्दगी को सहन करना होगा तथा जन्म के समय अनन्त वेदना और उसीप्रकार फिर मरण के समय भी अनन्त दुख भोगना पड़ेगा । यद्यपि सम्यक दृष्टि पुरुष दुःख को दुःख नहीं मानते, फिर भी कष्ट तो होता ही है । तीर्थंकर पद प्राप्त करने वाली आत्माओं को भी नर्क की अपार क्षेत्र वेदना भोगनी पड़ी थी। कहने का तात्पर्य यह है कि मिथ्यात्वी जहाँ रोते-झींकते दुखों को सहन करता है वहाँ सम्यक्त्वी कर्मों को कर्ज मानकर उन्हें शांति से चुकाता है किन्तु वेदना तो अवश्य होती है।
तो मैं देवताओं के विषय में बता रहा था कि जब उनका मृत्युकाल समीप
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