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सच्चा पंथ कौन सा ?
धर्मप्रेमी बंधुओ. माताओ एवं बहनो !
कल हमने धर्मशास्त्रों के विषय में काफी विचार-विमर्श किया और जानकारी हासिल की कि सम्यक्ज्ञान और सम्यक्दर्शन के मार्ग दर्शक धर्मशास्त्र हैं। धर्म शास्त्र विभिन्न भाषाओं में लिखे गए हैं, पर उन भाषाओं पर ध्यान न देकर हमें उनसे यह जानना है कि आत्मा का कल्याण किसमें है ? और उस कल्याण के मार्ग पर चलने के लिये कौन सी बातें ग्रहण करनी हैं तथा कौनसी छोड़नी हैं ? इन सब बातों को समझकर अमल में लाना ही शास्त्रों के पढ़ने का सार है। ___अगर धर्मशास्त्र सुनेंगे नहीं, सत्संग करेंगे नहीं तथा तत्त्व ज्ञान के रहस्य को काम में लेंगे नहीं तो आत्म-कल्याण कैसे होगा ? रास्ता ही जब जीव नहीं जानेगा तो चलेगा कैसे ? भटकने के लिये तो चौरासी लाख योनियाँ हैं
और इनमें भटकता-भटकता जीव मनुष्य शरीर में आया है। इसमें आने के पश्चात् ही इसे समझ आई है कि यह जीवन बड़ी कठिनाई से मिला है । जीवन में कर्तव्य-अकर्तव्य क्या है ? प्रशंसनीय व निन्दनीय क्या है तथा यशकारक और अपयशकारक क्या हैं ? इन सब बातों की जानकारी मानव जीवन में ही होती है, क्योंकि इस जीवन में बुद्धि और विवेक मिलते हैं जो अन्य योनियों में नहीं मिल पाते। अपनी विशिष्ट बुद्धि और विवेक द्वारा जब वह सम्यक् ज्ञान हासिल करता है तो शारीरिक सुख एवं ऐश-आराम को असार समझकर उनसे उदासीन हो जाता है और मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है। ___ इस मार्ग पर बढ़ने में शास्त्र उसके सहायक बनते हैं। किन्तु जब व्यक्ति धर्मशास्त्रों के गूढ़ रहस्यों तक नहीं पहुंच पाते और विभिन्न शास्त्रों की शब्दाबलियों में उलझकर निराशा से भर जाते हैं तो कहा जाता है
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