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आनन्द-प्रवचन भाग--४
मोर और कौवे के शरीर में रक्त का रंग समान ही होता है। इसी प्रकार सत्य सर्वत्र एक समान व्याप्त है।
भगवान महावीर ने यही कहा है कि तुम वस्तु को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखो और भले ही अपने दृष्टिकोण को सत्य समझो किन्तु जो दृष्टिकोण तुम्हें विरोधी प्रतीत होता है उसकी सत्यता को भी समझने का प्रयत्न करो। तभी विषमताएँ मिटेगी।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान महावीर का जीवन एकमुखी नहीं अपितु सर्वतोमुखी था । जिस क्षेत्र में भी उन्हें कोई त्रुटि दिखाई देती थी, वे जी-जान से उसे दूर करने का प्रयत्न करते थे । अपनी अलौकिक एवं अद्भुत प्रतिभा से उन्होंने समाज और धर्म का ढांचा ही परिवर्तित कर दिया था। आज भी अगर व्यक्ति उनके उपदेशों और आदेशों पर अमल करता हुआ चले तो कोई कारण नहीं है कि उसका जीवन उन्नति के चरम शिखर पर न पहुंच जाय।
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