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________________ तीर्थंकर महावीर अपने ही धर्म या मत को पूर्णतया सत्य मानकर अन्य धर्मों का विरोध करते हैं और संसार में धर्म के नाम पर घोर विवाद और समय-समय पर तो हत्याकांड भी हो जाते हैं । इसका मुख्य कारण एकान्तवाद ही है। एकान्तवाद यद्यपि अपूर्ण होता है किन्तु वह सम्पूर्ण होने का दावा करता है और इस झूठे दावे के आधार पर अन्य धर्मों को मिथ्या बताता है । किन्तु अगर प्रत्येक मनुष्य मतभेद की बातों पर ध्यान न देकर अन्य धर्मों की उन बातों को ध्यान में लावे, जिनसे वह सहमत है तो विरोध और विषमताये बहुत कम हो सकती थी। महात्मा कबीर एक ऐसे संत हुए हैं जो जीवनभर इन धर्मों के कारण लड़ने वालों की भर्त्सना करते रहे हैं। उन्होंने जिस प्रकार हिन्दुओं को फटकारा, उसी प्रकार मुसलमानों को भी । वे कहते थे हिन्दु कहै मोहि राम पियारा, तुरक कहे रहमाना। आपस में दोउ लरि लरि मुए सार न कोऊ जाना॥ उनका कथन यथार्थ है । धर्म को लेकर लड़ने वाले व्यक्ति सदा अपूर्ण रहते हैं और कभी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाते । कबीर ने आगे भी सार ग्रहण करने के विषय में अत्यन्त सुन्दर भाव व्यक्त किये हैं। कहा है एक वस्तु के नाम बहू, लीजे नाम पिछान । नाम पच्छ ना कीजिये, सार तत्त ले जान ॥ सब काह का लीजिए, सांचा शब्द निहार । पच्छ पात ना कीजिए, कहे कबीर विचार ।। सभै हमारे एक हैं, जो सिमरे सत नाम । वस्तु लहो पिछान के, वासन से क्या काम ॥ वास्तव में पूर्ण सत्य एक ही है, किन्तु विभिन्न मत उस सत्य के चरणों में पहुंचने के भिन्न-भिन्न मार्ग बतलाते हैं और अपने-अपने मार्ग की सत्यता पर अड़कर संघर्ष को जन्म देते हैं। इसी सत्य की एकता बताने के लिए फारसी का एक विचारक कहता है इख्तलाफे बजा बेदिल दरलिवासे बेरु अस्त । वरना खू यकसां बुबद दर पै करे ताऊसो जाग ।। बेदिल कवि का कहना है कि आकार का भेद बाह्य रूप में ही है, अन्यथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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