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________________ तीर्थकर महावीर इन्द्रभूति गौतम के साथ ही चार हजार चार सौ अन्य ब्राह्मणों ने भी भगवान के पास मुनि-दीक्षा धारण कर ली। नारी-जाति के प्रति भव्य कदम महावीर भगवान स्त्री-जाति के प्रति भी बड़ी उदारता रखते थे तथा उसका बड़ा सम्मान करते थे । उस समय जबकि नारी को समस्त धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों के लिए अयोग्य माना जाता था और उसे किसी भी क्षेत्र में कोई अधिकार नहीं दिया था, भगवान ने बुलन्द स्वर से कहा--- .. "स्त्री को भी पुरुष के समान ही प्रत्येक धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में भाग लेने का बराबर अधिकार है । स्त्री जाति को पुरुष जाति से हीन, पतित एवं अयोग्य समझना निरी भ्रांति है।" भगवान ने साधु-संघ के समान ही साध्वी-संघ भी बनाया जिसकी अभि नेत्री साध्वी चंदनबाला थीं जो कि पूर्ण स्वतन्त्र रूप से अपने संघ की देखरेख तथा उसका मार्गदर्शन करती थीं। महावीर के संघ में साधुओं की संख्या तो चौदह हजार थी किन्तु साध्वियों की संख्या छत्तीस हजार तक पहुंच गई थी। . इससे स्पष्ट झलकता है कि नारी केवल मांस-पिंड की संज्ञा ही नहीं है। वह पुरुष की अपेक्षा अधिक सहनशील, धीर और गंभीर होती है। उसके हृदय की करुणा और कोमलता उसके अंतरंग में उच्चतम विकास को साबित करती है जिसके बल पर समस्त - सदाचार ठहरे होते हैं। शायद इसीलिए 'विक्टर ह्य गो' ने कहा है ''Men have sight. women insight" यानी मनुष्य को दृष्टि होती है पर नारी को दिव्य दृष्टि । समन्वयवाद ... हमारे भारतवर्ष में दार्शनिक विचारधारा का जितना अधिक विकास हुआ है उतना किसी अन्य देश में नहीं हुआ । यहाँ पर भिन्न-भिन्न दर्शनों की भिन्न-भिन्न विचार धाराएं जन्म लेती और बढ़ती रही हैं । उन समस्त दर्शनों का उल्लेख किया जाना यहाँ संभव नहीं है पर महावीर के समय में जिन पाँच मुख्य वादों का यहाँ प्रचलन था उनके नाम हैं (१) कालवाद (२) स्वभाववाद (३) कर्मवाद (४) पुरुषार्थवाद और (५) नियतिवाद । ये पांचों वाद अथवा दर्शन अपने आपका मण्डन और दूसरों का खण्डन करते रहे हैं । इसके कारण जनता में बड़ी भ्रांतियां पैदा हुई। भगवान महावीर ने इनके आपसी संघर्ष को बड़ी सुन्दरता से मिटाया है। उन्होंने कहा- पांचों ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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