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आनन्द-प्रवचन भाग-४
हुए भगवान ने धर्मप्रेमी जनता के समक्ष अत्यन्त गद्गद् होकर स्वयं फरमाया था---
सक्खं खु दीसइ तवो विसेसो,
न दीसई जाइ-विसेस कोई । सोवागपुत्त हरिएस साहु, ___ जस्सेरिसा इड्ढि महानुभागा ॥
- उत्तराध्ययन सूत्र १२-३७ अर्थात्--प्रत्यक्ष में जो कुछ दिखाई देता है वह जाति का महत्व नहीं वरन तप का माहात्म्य ही दृष्टिगोचर होता है। इस महाभाग हरिकेशी मुनि को देखो ! चांडालपुत्र होने पर भी इसकी कैसी महा प्रभावशाली समृद्धि है। यानी अपने गुणों के कारण यह किस महान पद पर पहुँच गया है जिसे ब्राह्मण कहलाने वाले स्वप्न में भी प्राप्त नहीं कर सकते। ___इस प्रकार जातिवाद का पूर्णतया खंडन करते हुए महावीर ने उस समय जातिवाद का अस्तित्व नष्ट सा ही कर दिया था। वे जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त रहने वाली पाँच जातिया ही मानते थे-एकेन्द्रिय से लेकर पन्चेन्द्रिय तक । उन्होंने अंत्यज तो क्या अनार्यों और म्लेच्छों तक को संयम ग्रहण करने का अधिकार दिया था।
धर्म के नाम पर होनेवाले हिंसक विधि-विधानों का विरोध . भगवान महावीर के समय में वेद-मूलक हिंसापूर्ण विधि-विधानों का बड़ा बोल-बाला था । अपने आपको महापंडित और दिग्गज विद्वान मानने वाले असंख्य लोग धर्म के नाम पर हिंसक यज्ञ करते थे तथा उसकी बलिवेदी पर लाखों मूक पशु मौत के घाट उतारे जाते थे। पशु ही नहीं, मासूम मानवशिशु और वृद्ध भी यज्ञ की बलिवेदियों पर चढ़ा दिये जाते थे।
__ भगवान का हृदय यह देखकर दहल उठा और उन्होंने इन हिंसक विधानों के विरोध में आवाज उठाई। उनके आचरण मूलक धर्मोपदेश, दिव्यज्ञान तथा उज्ज्वल तपःतेज का ऐसा अद्भुत प्रभाव उन कर्मकाण्डी ब्राह्मणों पर पड़ा कि उन्होंने सदा के लिए धर्म के नाम पर करने वाले हिंसापूर्ण यज्ञों को पुनः करने का त्याग कर दिया। . इन्द्रभूति गौतम, जो आगे जाकर भगवान के प्रिय शिष्य बने, अपने समय के धुरन्धर विद्वान और बड़े क्रियाकांडी ब्राह्मण माने जाते थे। वे पावापुर में एक विशाल यज्ञ की आयोजना में लगे हुए थे । भगवान की इनसे मुठभेड़ हुई और ऐसी हुई कि गौतम यज्ञ करना-कराना छोड़कर इनके शिष्य ही बन गए।
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