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आनन्द-प्रवचन भाग-४
को देखकर मिथ्या अहंकार के वश बातें अवश्य बनाते हैं पर जान का खतरा देखते ही भाग खड़े होते हैं। __ वस्तुतः वीर पुरुष कायरता प्रदर्शित करने की अपेक्षा मर जाना अधिक पसंद करते हैं और इसीलिये वे एक बार ही मरते हैं. जहाँ, कायर बार-बार पीठ दिखाकर दुनिया की दृष्टि में तिरस्कृत होते हैं और इस प्रकार बार-बार
मरते हैं।
यह एक बात और भी ध्यान में रखने की है कि इस संसार में केवल भौतिक पदार्थों के लिये होने वाला युद्ध ही युद्ध नहीं है अपितु आध्यात्मिक दृष्टि से अगर हम विचार करते हैं तो मन की विषय-वासनाओं, विकारों एवं कषायों से लड़ना भी युद्ध है । ये विषय-विकार आत्मा के सबसे बड़े दुश्मन हैं और इन्हें जीतना भी कम मुश्किल नहीं है। अनेक योगी और महर्षि भी कभी-कभी इन से हार खाकर अपने हथियार डाल देते हैं । आपने घोर तपस्वी विश्वामित्र का नाम सुना होगा जिन्होंने अपनी वर्षों की तपस्या को मेनका के अल्प-कालीन हाव-भावों पर खो दिया था। ऐसे अनेक उदाहरण हमें बताते है कि 'काम' पर विजय पाना बड़ा कठिन है और यह बड़े-बड़े योगियों को भी भोगियों की कतार में लाकर छोड़ देता है । इसके प्रभाव से राजा, रंक, पंडित, मूर्ख, रोगी या भिखारी कोई भी बच नहीं पाता। कहा भी है:
भिक्षाशनं तदपि नीरसमेकवारं, शय्या च भूः परिजनो निजवेहमात्रम् । वस्त्रं च जीर्ण शतखण्डमयी च कन्या,
हा हा ! तथापि विषयान्न परित्यजन्ति । अर्थात् जो भीख मांग कर रूखा-सूखा खाता है, जमीन पर सोता है, परिवार के नाम पर केवल देह जिसकी होती हैं, जीर्ण-शीर्ण वस्त्र पहनता है तथा सैकड़ों चिथड़े जोड़-जोड़कर जिसकी कथड़ी बनती है, बड़ा खेद है कि ऐसा व्यक्ति भी विषय-भोगों का त्याग नहीं कर पाता।
इस कथन से स्पष्ट है कि काम-विकार अत्यन्त शक्तिशाली होता है और इसे जीतना मनुष्य के लिये अत्यन्त कठिन होता है। किन्तु जो पूर्णतया जीत लेता है वह सच्चा वीर कहलाता है। शंकराचार्य का कथन भी प्रश्नोत्तर के रूप में हैं
शूरान्महाशूरतमोऽस्ति को वा
मनोज वाणर्व्यथितो न यस्तु । वीरों में सबसे बड़ा वीर कौन है ? जो काम-बाणों से पीड़ित नहीं होता । तो बंधुओं, हम सांसारिक दृष्टि से युद्ध में दुश्मनों को जीतने वाले
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