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उत्तम पुरुष के लक्षणे
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किन्तु इसके विपरीत अगर व्यक्ति शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करे तो उनके द्वारा वह जन्म-मरण के दुःखों से छुटकारा पाने के उपायों को जान लेता है
और उन उपायों के द्वारा अपनी आत्मा को शुद्ध एवं पवित्र बनाकर मृत्यु को जीत सकता है। इसीलिये पद्य में कहा गया है कि अगर व्यक्ति शास्त्र में से मोक्ष मार्ग पहचान कराने वाला एक श्लोक भी जीवन में उतार ले तो उससे इतना लाभ हासिल कर सकता है, जितना सांसारिक विद्या को सिखानेवाले करोड़ों ग्रन्थों के पठन से भी प्राप्त नहीं कर सकता।
शास्त्र-ज्ञान ही मनुष्य के अन्दर रहे हुए सद्गुणों को जगाता है, उसे प्रवृत्ति मार्ग से निवृत्तिमार्ग की ओर ले जाता है तथा आसक्ति के चंगुल से छुड़ाकर विरक्ति की ओर उन्मुख करता है । कहा भी है- .
अध्यात्मशास्त्रमुत्ताल-मोहजाल वनानलः ।" अर्थात्-आध्यात्मिक शास्त्र ही भयंकर मोह-जाल रूपी वन को जलाने के लिये अग्नि के समान हैं। ___ इसलिये शास्त्र-ज्ञान मनुष्य के लिये आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। क्योंकि आध्यात्मिक-ज्ञान प्राप्त किये बिना व्यक्ति अपने दुर्लभ मानव जीवन का महत्व नहीं जान पाता और इसका महत्व न जानने पर इसका लाभ भी नहीं उठा सकता । शास्त्र ही वह अपूर्व साधन है, जिसकी सहायता से मानव युक्ति के मार्ग पर चल सकता है और आत्मा को सदा के लिये इस संसार से छुटकारा दिला सकता है। अतः शास्त्र-बोध प्रत्येक के लिये आवश्यक है और जो इसका बोध करता है वही सच्चे मायने में पुरुष कहलाने का अधिकारी बन सकता है। (५) रणे योद्धा
अब हमारे पद्य के अनुसार पुरुष का पाँचवाँ लक्षण 'रणे योद्धा' कहा गया है। इसका अर्थ यही है कि अपने धर्म के लिये, समाज के लिये अथवा देश के लिये अगर कभी रणांगण में जाकर लड़ने का काम पड़े तो व्यक्ति शूरवीर के समान युद्ध करे । कायर बनकर पीठ कभी न दिखाये । युद्ध में पीठ दिखाकर आने वाला व्यक्ति कभी संसार में सम्मान और आदर प्राप्त करने का अधिकारी नहीं बनता तथा उसमें मर जाने वाला व्यक्ति सदियों तक के लिये अपना नाम अमर कर जाता है। महात्मा तुलसीदास जी ने कहा है :
सूर समर करनी करहिं, कहि न जनावहिं आपु ।
विद्यमान रन पाइ रिपु, कायर करहिं प्रलापु॥ जो सच्चे योद्धा और वीर होते हैं वे समर भूमि में करनी करके बताते हैं, व्यर्थ का गर्व करके बातें नहीं बघारते । किन्तु कायर व्यक्ति सामने दुश्मन
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