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उत्तम पुरुष के लक्षण
२२१ ब्राह्मण यह चमत्कार देखकर दिग्मूढ़ सा रह गया और कंगन देखकर तो उसकी आँखें फटी सी रह गई। बड़ी कठिनाई से वह जल के बाहर निकला
और उस अभूतपूर्व कंगन को देखकर सोचने लगा___ “कितने आश्चर्य की बात है कि गंगा-मैया ने एक चमार की भेंट अपने हाथों में ले ली और बदले में यह कंगन उसे दिया है, ऐसा कंगन तो मैंने जीवन में कभी देखा ही नहीं ! राजा-महाराजाओं के यहाँ भी ऐसा रत्न जटित कंगन नहीं हो सकता । पर वह चमार इसका क्या करेगा ? अच्छा हो कि मैं ही इसे घर ले चलू । ब्राह्मणी इसे पाकर खुश हो जाएगी मैं दूसरे रास्ते से घर को चला जाऊँगा । और फिर रैदास चमार को पता भी क्या चलेगा कि गगा माता के उसकी सुपारी के बदले में मुझे उसके लिये क्या दिया है ?"
इस प्रकार विचार करते हुए ब्राह्मण के मन में खोट आ गई और वह कंगन लेकर रैदास चमार की ओर न जाने वाले दूसरे चक्करदार रास्ते से जल्दी-जल्दी घर की ओर बढ़ा । कुछ समय पश्चात ही वह अपने घर के दरवाजे पर आ पहुंचा। ____ पति को गंगा स्नान से लौटा देखकर ब्राह्मणी दरवाजे पर आ गई और उसकी कूल क्षेम पूछने लगी। ब्राह्मण ने उसकी किसी बात का उत्तर न देते हुए अंगरखे की जेब से कंगन निकाला और पत्नी के हाथ पर रख दिया। ___कंगन देखकर ब्राह्मणी भो आश्चर्य से अभिभूत हो गई और बोली-“यह कहाँ से आया ?" ब्राह्मण ने झूठे घमंड से अकड़कर कहा- 'मैंने इतनी बार पैदल जा जाकर गंगा स्नान किया है गंगा माई प्रसन्न हो गई और मेरी भक्ति के फलस्वरूप उन्होंने यह कंगन मुझे भेंट किया है। लो तुम पहन लो इसे !"
पर ब्राह्मणी ने इनकार करते हुए कहा
"नहीं, प्रथम तो मुझ दरिद्र के हाथ में यह शोभा ही नहीं देगा, दूसरे लोग चोरी की चीज कहकर हमें पकड़वा देंगे। इससे तो अच्छा यह है कि तुम सारी बात सही-सही बताकर इसे राजा को भेंट कर दो और इसके बदले में राजा हमें जो देंगे उससे हमारा निर्वाह होगा।"
ब्राह्मण को पत्नी की बात पसंद आई और कंगन लेकर राज दरबार में गया तथा राजा को भेंट कर दिया। राजा बहुत प्रसन्न हुए और उसके बदले में ब्राह्मण को काफी द्रव्य इनाम में दिया। इसके पश्चात जैसा कि स्वाभाविक था, कंगन राजा ने महारानी जी को दिया और ब्राह्मण की सारी बात बताई।
यह सब सुनकर महारानी जी ने उत्तर दिया
"महाराज ! यह सब तो ठीक है किन्तु एक बात तो आपके ध्यान में आई ही नहीं।"
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