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आनन्द-प्रवचन भाग-४
___"वह क्या ?" राजा ने आश्चर्य से कहा।
''मैं कंगन एक हाथ में कैसे पहनूंगी? दोनों हाथों में पहनने के लिये दो कंगन होने चाहिये । आप कृपा करके ब्राह्मण से इसके जोड़ का दूसरा कंगन भी मंगवा दीजिये ।" - "पर यह कैसे हो सकता है ? ब्राह्मण के पास तो इसके जोड़ का कगन है नहीं, वह गंगा मैया की मेंट है और उन्होंने एक ही दिया था।"
"तो क्या हुआ ? ब्राह्मण देवता गंगा के सच्चे भक्त हैं अतः दूसरा भी उन्हीं से मांगकर ले आएँगे। जब वे एक कंगन दे सकती हैं तो दूसरा क्यों नहीं दे सकती ?" - "ठीक है, मैं ब्राह्मण को बुलाकर कहूंगा।" कहते हुए राजा रनिवास से आ गए और दूसरे दिन उन्होंने ब्राह्मण को दरबार में बुलाकर महारानी का आग्रह बताया तथा दूसरा कंगन लाने का आदेश दिया।"
ब्राह्मण ने राजा की आज्ञा पर अपना कपाल पीट लिया और झींकतेझींकते घर आया। ब्राह्मणी ने पति की अवस्था देखकर उसका कारण पूछा तो वह क्रोध में भरकर बोला-"औरतों की सलाह के अनुसार काम करने पर ऐसा ही होता है, अब बांधो बोरिया-वासना और निकलो इस राज्य से ।"
"आखिर बात क्या है, वह तो बताओ ?" ब्राह्मणी ने विनय से पूछा। ब्राह्मण ने उसे राजा की आज्ञा सुना दी।
बेचारी ब्राह्मणी क्या जानती थी कि वह कंगन एक चमार की सुपारी के बदले उसे दिया गया था और ब्राह्मण धोखे से उसे अपना बनाकर ले आया है । अतः वह भी पति से बोली- , ___ "इसमें इतनी चिन्ता की क्या बात है ? पहला कंगन हमने राजा को भेंट कर दिया है और दूसरा भी हमें तो रखना नहीं है । यह जान कर गंगा-मैया अवश्य ही तुम्हें दूसरा कंगन प्रदान कर देंगी। निश्चित होकर जाओ और गंगा-माता से प्रार्थना करके दूसरा कंगन ले आओ। आखिर तो तुम उनके इतने बड़े भक्त हो कि सारी दुनियां को छोड़कर तुम्हें ही उन्होंने यह दैवी कंगन दिया है।"
. ब्राह्मण किस मुंह से पत्नी के सामने अपनी धोखेबाजी की बात कहता? मन मार कर वहाँ से चल दिया। उसने सोचा कि जाकर गंगा में ही डूब मरूं तो अच्छा और मन में यही विचार करके चलता रहा। पर मौत किसे अच्छी लगती है ?
सम्वे जीवा वि इच्छंति, जीविडं न मरिज्जिलं ।
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