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तीर्थंकर महावीर
... तीर्थंकर त्याग और वैराग्यपूर्ण साधना करते हुये अपने मन को काषायिक विकारों से मुक्त करते हैं तथा संसार की मोह-ममता का परित्याग करके कठिन आभ्यंतर एवं बाह्य तप करते हुए सत्य की अलौकिक ज्योति प्राप्त कर लेते हैं । दूसरे शब्दों में केवल ज्ञान की प्राप्ति करते हैं। ___त पश्चात् वे संसार के प्राणियों को धर्मोपदेश देकर उन्हें असत्य के मार्ग से हटाकर सत्य के मार्ग पर लाते हैं और संसार में शांति का सुखद साम्राज्य स्थापित कर अपने कर्तव्य का पालन करते हैं । वे अज्ञानी प्राणियों को सम्यक् ज्ञान का आलोक देते हैं तथा उन्हें भौतिक सुखों की वाञ्छा से हटाकर आध्यात्मिक सुखों के अभिलाषी बनाते हैं। इस प्रकार असंख्य प्राणियों को पतन से बचाकर वे उत्थान की ओर लाते हैं। ऐसे ही तीर्थंकर भगवान महावीर थे।
प्रकृति का नियम .. अब तक के सृष्टि के इतिहास को देखने पर लगता है कि जब-जब इस पृथ्वी पर होने वाला अत्याचार अपनी सीमा लांघने लगता है, अधर्म का साम्राज्य स्थापित होने पर धर्म का अस्तित्व डगमगाने लगता है तथा जनता अधर्म को ही धर्म मानकर भ्रमपूर्ण धर्म-रहित क्रियाएँ धर्म मानकर करने लगती है, तब कोई न कोई महापुरुष समाज और देश का उत्थान करने, तथा धर्म को उसके सही स्थान पर विभूषित करने के लिये अवश्य जन्म लेता है। भगवत्गीता में भी श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है
यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत ! अभ्युत्थानमधर्मस्य, तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ परित्राणाय साधूनां, विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥ अर्थात् जब-जब धर्म की हानि और अधर्म वृद्धि होती है तब-तब मैं अवतार धारण करता हूँ। साधुओं की रक्षा के लिये, पापियों के नाश के लिये और धर्म की स्थापना के लिये मैं युग-युग में अवतार लेता हूँ।
तो भगवान महावीर के जन्म से पहले भी भारत की तत्कालीन दशा बड़ी दयनीय थी और भारत-भूमि किसी महापुरुष के अवतार लेने की बड़ी व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रही थी। ठीक उसी समय मगध की राजधानी वैशाली जिसे कुण्डलपुर भी कहा जाता था, वहाँ के राजा सिद्धार्थ एवं रानी त्रिशला
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