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आनन्द-प्रवचन भाग-४
____ आनंद श्रावक को अवधिज्ञान हुआ था किन्तु जब गौतम स्वामी उनके यहाँ गए और उन्हें आनन्द जी ने यह बात बताई तो गौतम स्वामी ने विश्वास नहीं किया और कहा--'श्रावक जी ! गृहस्थ को इतना बड़ा अवधिज्ञान नहीं हो सकता, अतः अपनी इस गलत बात के लिये आपको प्रायश्चित करना चाहिये । आनंद श्रावक जी ने गौतम स्वामी की बात को बुरा नहीं माना केवल विनम्रता से पूछा- भगवन् ! प्रायश्चित दोषी को आता है या निर्दोषी को ?"
गौतम स्वामी कुछ उत्तर नहीं दे पाये और सीधे भगवान् के समक्ष आ उपस्थित हुए तथा अपनी शंका बताए हुए आनन्द श्रावक के विषय में पूछा-"भगवन् ! आनन्द जी कहते हैं कि उन्हें अवधिज्ञान हो गया है तो क्या यह यथार्थ है ? गृहस्थ को अवधिज्ञान होना संभव है क्या ? ___ भगवान् ने उत्तर दिया -- आनन्द श्रावक को अवधि ज्ञान हुआ है यह सत्य है । और गृहस्थ को केवल ज्ञान भी हो सकता है।"
अब समस्या सामने आई कि गौतम स्वामी के आनन्द श्रावक जी को जो गलत साबित किया था उस भूल का सुधार कैसे हो ? आनन्द श्रावक जी गृहस्थ थे और गौतमस्वामी भगवान् के पट्टधर शिष्य । ____ बंधुओ ! आज हमारे जैसा कोई संत होता तो यही कह देता-"कोई बात नहीं है, मैं श्रावक जी को बुलाकर समझा दूंगा।"
किन्तु भगवान् ने अपने प्रिय शिष्य का भी मुलाहिजा नहीं रखा । स्पष्ट कह दिया- “गौतम ! आनन्द श्रावक को अवधिज्ञान हुआ है यह तो सत्य है । और उसने तुम्हारे समक्ष जो बात प्रकट की यह भी टीक ही है । उसकी कहीं भूल नहीं हुई। पर तुमने उसे झूठा साबित किया अतः गलती तुम्हारी है। तुम्हारे शब्दों की प्रतिष्ठा भी गृहस्थ के शब्दों से अधिक है, अतः तुम स्वयं जाकर आनन्द के समक्ष अपनी भूल स्वीकार करो। और खमतखामना करो।'
कितनी उदारता और न्याय प्रियता थी भगवान् के हृदय में ? अहं का लेश भी उनमें नहीं था।
आज तो थोड़ा सा धन भी किसी के पास अधिक हो जाता है तो वह सीधे मुंह किसी से बात नहीं करता । अपने गुरु के पास भी स्वयं न जाकर उन्हें अपने वहाँ बुलवाता है । और तो और, घर में साधु-साध्वी आहार-पानी के लिए आ जाये तो उन्हें अपने हाथ से आहार देने में भी लज्जा का अनुभव करता है तथा यह कार्य रसोईदार के जिम्मे छोड़ दिया जाता है । धन के नशे में चूर होने के कारण अपने से तिगुनी उम्र वाले अपने मुनीम-गुमाश्तों को भी
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