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________________ इन्सान ही ईश्वर बन सकता है ? ११३ मरने के बाद भी उनके नाखून, सींग, चमड़ी और हड्डियां सभी काम आते हैं । मांसाहारी व्यक्ति उनके मांस को भी अपने उदरस्थ कर लेते हैं। ___ इसीलिए इन पशुओं को धन्य कहा है जो कि जीवित रह कर भी परोपकार करते हैं और मरने ने पश्चात् भी उपकार करते हैं। किन्तु मनुष्य जो कि जीवित रहते हुए भी अपना ही भला देखता है और मरने पर भी उसका शरीर किसी काम नहीं आता । ऐसे जीवन से क्या लाभ है ? जीना उसी का सार्थक है जो औरों के लिए जीता है । गुजराती कविता में आगे बताया गया है खिल्या पुष्पो खरीजाशे, जे जन्म्या छ मरी जाशे । उदय नु अस्त ये न्याये, भला थइने भलू कर जो ॥ इस संसार में सब कुछ नाशमान है। बगीचों में खिले हुए पुष्प सभी गिर कर सूख जायेंगे, जो जीव जन्मे हैं, वे मृत्यु को प्राप्त होंगे, । भाव यही है कि उदय होने पर उसका अस्त निश्चय ही होगा। यही संसार का नियम है। ___अतः संसार का मोह त्याग देने में ही सार है । जब तक हमारे शरीर में श्वांस आती जाती है, तभी तक सारे सगे-सम्बन्धी हमें दिखाई देते हैं पर मांस का नाश होते ही ये सब ओझल हो जायेंगे, नजर ही नहीं आएँगे। जिस प्रकार किसी वृक्ष पर रात को विभिन्न स्थानों से आकर हजारों पक्षी बसेरा लेते हैं और प्रातःकाल होते ही उड़ जाते हैं। इसी प्रकार यह जगत भी है जहां थोड़े समय के लिए अनेक जीव आकर सगे-संबंधी बन जाते हैं । और मौत का नगारा बजते ही अपने-अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में चले जाते हैं । तो जिस प्रकार वृक्ष पर रात को बसेरा लेने वाले पक्षियों का आपस में नाता जोड़ना निरर्थक है उसी प्रकार मनुष्य को भी थोड़े समय के जीवन में एक दूसरे से ममत्व में बंधना भी निरर्थक है। कवि सून्दरदास जी का कथन है बालू के मन्दिर माहि, बैठि रह्यो थिर होइ । राखत है जीवन की आस केउ दिन की ॥ पल-पल छीजत घटत जात घरी घरी । बिनसत बेर कहा खबर न छिन की। करत उपाय, झूठे लेन-देन खान-पान । मूसा इत-उत फिरे ताकि रही मिनकी ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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