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________________ इन्सान ही ईश्वर बन सकता है ! १०५ के उस व्यक्ति में कितनी ताकत थी कि उसने संसार के सम्पूर्ण देशों को अपने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के समक्ष झुकाया तथा भारत का लोहा मानने को मजबूर कर दिया । युग-युग तक जिस राम और गाँधी को संसार स्मरण करेगा वे इन्सान ही तो थे । आगे कहा गया है: इसी ने वीर भामा बनके, वोह राणा की सेवा की । क्या आप है गाता गीत जिसके, आज तक सब रत्न पाकर भी बदकिस्मत, जो मिट्टी में न उसको गर कहें मूरख कहें कवि का कथन है— इसी इन्सान ने उदारता का सिक्का चारों ओर जमाया। की रक्षा के निमित्त अर्पण करके महाराणा प्रताप की उसने जो सहायता की थी वह इतिहास में स्वर्णाक्षरों से सदा के लिये अकित हो गई । राजपूताने के उस महान् व्यक्ति की गुणगाथा आप लोग भी गद्गद् होकर गाते हैं । वीर भामाशाह के रूप में अपनी अपनी अथाह दौलत को अपने देश किन्तु अन्त में कवि यही कहता है कि ऐसे महान् और असंभव कार्यों को भी संभव बना सकने की क्षमता रखने वाले मानव जन्म रूपी अनमोल चिन्तामणि रत्न को पाकर भी जो व्यक्ति उससे लाभ नहीं उठाता, अपने दुर्भाग्य और दुष्कर्मों के कारण उसे मिट्टी में मिला देता है उसे हम मूर्ख न कहें तो आप ही बताइये क्या कहें ? बंधुओ, क्या कवि का कथन यथार्थ नहीं है ? जिस मानव शरीर के द्वारा वह ईश्वर बन सकता है, उसी के द्वारा अपनी आत्मा को नरक, निगोद, तिर्यंच आदि यानियों में लेजाकर असह्य दुःख प्रदान कराना क्या मूर्खता नहीं है ? निश्चय ही इससे बढ़कर भयंकर भूल और मूर्खता अन्य कोई नहीं हो सकती । इसीलिये संत, महापुरुष एवं हमारे शास्त्र सदा प्राणी को उद्बोधन देते हैं तथा उसे जाग्रत होने की प्रेरणा देते हैं । उपनिषद् में एक वाक्य कहा गया है : राजपूताना ॥ मिला बैठे । फरमाना ॥ "उत्तिष्ठत जाग्रत ! प्राप्य वरान् निबोधत ।” इसका अर्थ है - उठो, जागो, श्रेष्ठ पुरुषों का आर्शीवाद लो तथा औरों को बोध दो । आप सोचेंगे हम तो जाग रहे हैं और बैठे हुए हैं फिर उठना और जागना कैसा ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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