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________________ ७४ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग मनुष्य सभी आए थे। वैताढ्य पर्वत के अगले हिस्से में विद्याधर रहते हैं, अपनी विद्या के बल पर ही वे अपने कार्य सम्पन्न करते हैं अतः उन्हें विद्याधर कहा जाता है। ___ तो एक विद्याधर जब भगवान के दर्शन करने के पश्चात् अपने निवासस्थान को लौटने लगा तब उसने अपने विमान को चलाने के लिए मन्त्र पढ़ा। संयोगवश वह मन्त्र के कुछ अक्षरों को भूल गया और उसका विमान एक अंगुल भी ऊँचा नहीं उठ सका । बार-बार मन्त्र पढ़ने पर भी विमान को न उठते देख वह बहुत परेशान हुआ। विद्याधर की इस परेशानी को महाराजा श्रेणिक के पुत्र एवं मंत्री अभय कुमार ने देखा तो भगवान से पूछा- "देव, विद्याधर की परेशानी का क्या कारण है ?" भगवान् ने उत्तर दिया--''इसके मन्त्र पढ़ने में कुछ गलती हो रही है । यह मन्त्र के कुछ शब्दों को भूल गया है अत: विमान को चला नहीं सकता।" यह देखकर अभयकुमार विद्याधर के समीप आए और बोले- भाई क्या बात है ?" "विमान उठ नहीं रहा है।" विद्याधर ने संक्षिप्त उत्तर किया। "आप कौन-सा मन्त्र पढ़ रहे हैं इसे उठाने के लिये ?" अभयकुमार ने पुनः पूछा। "वह तो मैं पढ़ ही रहा हूँ अब आप को क्या-क्या बताऊँ ।” विद्याधर ने रुखाई से कहा। "पर बताने में आपका क्या नुकसान है ? संभव है मैं आपकी कुछ सहायता कर सकू।" अभयकुमार के आग्रह और अपनी परेशानी को देखते हुये विद्याधर ने मन्त्र अभय कुमार को सुनाया । अभयकुमार बड़े बुद्धिमान और सभी विद्याओं के धनी थे। उन्होंने फौरन मन्त्र में रही हुई त्रुटि या कमी को पूरा कर दिया और उसके अनुसार मन्त्र पढ़ने पर उस विद्याधर का विमान क्षणभर में चल दिया। इस उदाहरण से आशय यही है कि अभयकुमार जैसे सत्पुरुष के कुछ क्षणों के सम्पर्क से ही विद्याधर को कितना लाभ हुआ ? दूसरे, यह शिक्षा भी औरों को मिली कि किसी भी मन्त्र अथवा पाठ का उच्चारण करते समय उसके शब्दों को शुद्ध बोलना चाहिए, अक्षर न अधिक और न ही कम बोले जाने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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