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________________ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग कहने का अभिप्राय यही है कि सत्संगति से न हो सकने वाला काम भी सहज और संभव हो जाता है । अगर व्यक्ति सदा श्रेष्ठ पुरुषों की संगति में रहे तो अज्ञान, अहंकार आदि अनेक दुर्गुण तो उसके नष्ट होते ही हैं, उसे आत्म-मुक्ति के सच्चे मार्ग की पहचान भी होती है जिसको पाकर वह अपने मानव-जीवन को सार्थक कर सकता है । ६६ -- श्री भर्तृहरि ने भी सत्संगति का बड़ा भारी महत्त्व बताते हुए कहा है :जाड्यँधियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यं - मानोन्नति दिशति पापमपाकरोति । श्वेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिसत्संगतिः कथय किन्न करोति पुंसाम् ॥ - नीति शतक सत्संगति बुद्धि की जड़ता को नष्ट करती है, वाणी को सत्य से सींचती है, मान बढ़ाती है, पाप मिटाती है, चित्त को प्रसन्नता देती है, संसार में यश फैलाती है । सत्सगति मनुष्य का कौन-सा उपकार नहीं करती ? कितना महात्म्य है सत्संगति का अर्थात् सज्जन पुरुषों का ? प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों ? इतना अधिक महत्त्व संत समागम को किसलिये दिया गया है ? यही मैं आपको बताने जा रहा हूँ । सत्संगति से लाभ 1 सज्जन पुरुषों के समागम से पहला और सर्वोत्तम लाभ यह है कि वे शत्रु और मित्र दोनों से ही समान व्यवहार करते हैं । वे सदा दूसरों का हित ही करते हैं, कभी भी किसी अन्य की चाहे वह उनका कट्टर वैरी ही क्यों न हो, हानि नहीं करते, उसके अहित की भावना हृदय में ही नहीं लाते। इससे स्पष्ट है कि किन्हीं कारणों से, सबब से अगर वे किसी का हित न कर पाएँ तो भी उनके द्वारा अहित होने का भय नहीं रहता । आपको क्षमा नहीं करूंगा महात्मा गाँधी जब दक्षिण अफ्रीका में थे, उनकी एक इन्जीनियर केलन बैंक से जो कि जर्मनी के रहने वाले थे, मित्रता हुई । केलन बैंक गाँधी जी के सद्गुणों अत्यन्त प्रभावित हुए और उनके सम्पर्क से स्वयं भी बड़े सीधे-साधे ढंग से रहने लगे। वे अधिकतर गाँधी जी के साथ ही रहा करते थे तथा प्रतिदिन उनके साथ भ्रमणार्थ जाया करते थे । एक बार उन्हें मालूम पड़ा कि कुछ व्यक्ति बापू की हत्या करने का विचार कर रहे हैं और इसके लिये षड्यन्त्र रच रहे हैं । यह मालूम होते ही वे सतर्क Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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