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मौन की महिमा
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो!
हमारा विषय ज्ञान प्राप्ति के ग्यारह कारणों को लेकर चल रहा है। पहले हमने इनमें से तीसरे कारण 'ऊनोदरी' पर स्पष्टीकरण किया था। आज अल्प बोलने से किस प्रकार ज्ञान अधिक हासिल किया जा सकता है, इस पर विचार करेंगे। ___ अल्प यानी थोड़ा। थोड़ा बोलने को संस्कृत में मित-भाषण कहते हैं। मित-भाषण करने का अर्थ है-मर्यादित बोलना। उचित और आवश्यक बोलना अत्यन्त लाभकारी है। वह किस प्रकार ? यही मैं बताने जा रहा हूँ। जिह्वा किस लिये ?
संसार में प्रश्नकर्ताओं की कमी नहीं है। कोई यह भी प्रश्न कर सकता है कि भगवान ने जीभ बोलने के लिये ही दी है, फिर उसका उपयोग क्यों न करें ? __बात सही है, मैं भी इसे मानता हूँ। इस विराट विश्व में अनन्तानन्त प्राणी हैं जो एकेन्द्रिय हैं उन्हें केवल स्पर्शेन्द्रिय मिली है, अन्य इन्द्रियाँ नहीं और जिनके दो इन्द्रियां हैं उन्हें जिह्वा इन्द्रिय मिली तो है पर स्पष्ट और सार्थक बोलने की शक्ति नहीं मिली। इसी प्रकार तीन एवं चार इन्द्रियों वाले प्राणी भी स्पष्ट बोलने में असमर्थ रहते हैं। यहाँ तक की समस्त पंचेन्द्रिय प्राणी भी तो स्पष्ट बोल नहीं पाते । हम देखते हैं विशालकाय हाथी, घोड़े, शेर आदि जो पंचेन्द्रिय हैं वे भी मनुष्य की भाँति सार्थक वचनों का उच्चारण नहीं कर सकते। विचारों का आदान-प्रदान कर सकने की क्षमता केवल मनुष्य में ही है। इससे साबित होता है कि असंख्य और अनन्त जन्मों में भ्रमण करने के पश्चात् जीवन को केवल मानव योनि में ही प्रबल पुण्योदय से स्पष्ट, सार्थक और व्यक्त वाणी बोलने की क्षमता प्राप्त होती है । इसे प्राप्त करने के लिये मनुष्य को बड़ा भारी मूल्य पुण्य के रूप में देना पड़ता है। __किन्तु इस भारी कीमत देकर पाई हुई बहुमूल्य बस्तु को क्या हमें व्यर्थ ही जाने देना चाहिये ? क्या उस चुकाई हुई कीमत से पुनः कुछ वसूल नहीं करना चाहिये । कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति इस बात को स्वीकार नहीं करेगा।
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