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________________ ३८ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग 1 श्लोक के अनुसार पाँच लक्षणों से युक्त विद्यार्थी ही अपने ज्ञान प्राप्ति के लक्ष्य को पूरा कर सकता है । उसका पहला लक्षण है - 'काक चेष्टा" अर्थात् विद्यार्थी कौए के समान अपनी चेष्टा रखे । कौआ बड़ा होशियार पक्षी माना जाता है । उसकी दृष्टि बड़ी तेज होती है जिसका उदाहरण देते हुए कहा भी जाता है— 'कौए के समान पैनी दृष्टि रखो ।' अपने कार्य में वह बड़ा सजग रहता है । जरा आँख चूकी कि वह वस्तु ले भागता है । इसलिए उसकी चेष्टा के समान ही ज्ञानार्थी की ऐसी चेष्टा को विद्वान् कहते हैं । दूसरा लक्षण बताया है- बबध्यानं' अर्थात् बगुले के समान एकाग्र होकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगा रहे । बगुले की धैर्यता सराहनीय होती है । वह घंटों एक पैर पर मूर्तिवत् खड़ा रहता है । उसके शरीर में कोई हरकत न होने के कारण मछलियाँ भ्रम में पड़ जाती हैं और निर्भय होकर पानी में विचरण करती हैं । किन्तु जिस उद्देश्य को लेकर बगुला अपने धैर्य का परिचय देता है उसकी पूर्ति के समीप होते ही वह कब चूक सकता है ? मछली के समीप आते ही चट से उसे पकड़ लेता है । ज्ञानार्थी को भी ऐसा ही एकाग्र होकर प्रत्येक शिक्षा और प्रत्येक गुण को अविलम्ब ग्रहण कर लेना चाहिये । तीसरी बात बताई गई है - 'शुनो निद्रा' अर्थात् निद्रा कुत्ते के समान हो । हमारा आज का विषय भी यह कह रहा है कि निद्रा कम करने से ज्ञानलाभ होता है । यह नहीं कि व्यक्ति ज्ञान तो हासिल करने की इच्छा रखे किन्तु रात्रि को सोया तो प्रातःकाल तक खर्राटे भरता रहे और दोपहर को खाना खाकर लेटे तो फिर शाम को ही उठे । ऐसा करने पर तो ज्ञान-प्राप्ति की कामना असफलता के गहरे समुद्र में विलीन हो जाएगी । अतः आवश्यक है कि जिस प्रकार कुत्ता तनिक सी पैर की आहट होते ही जाग जाता है, सजग हो जाता है उसी प्रकार विद्यार्थी भी बिना हिलाने-डुलाने और आवाजें लगाने पर भी समय होते ही सजग होकर ज्ञानाभ्यास में लग जाय और कम से कम निद्रा लेकर अधिक से अधिक ज्ञानार्जन करने का प्रयत्न करे । अब विद्यार्थी का चौथा लक्षण आता है - 'अल्पाहार' । आप सोचेंगे कि आहार का ज्ञान प्राप्ति से क्या सम्बन्ध है ? भूखे पेट तो किसी भी कार्य में मन नहीं लगता फिर पढ़ाई जैसा कार्य खाए बिना कैसे होगा ? यह सत्य है कि बिना आहार किये पढ़ने में भी मन नहीं लग सकता अतः भोजन करना अनिवार्य है । किन्तु यह भी सत्य है कि आवश्यकता से अधिक खाने से शरीर पर आलस्य छा जाता है और अधिक निद्रा आती है । हम देखते हैं कि पेट भर जाने पर भी अगर कोई स्वादिष्ट वस्तु सामने आ जाती है तो मनुष्य उसे अवश्य खा लेता है तथा दाल, सब्जी या चटनी के स्वादिष्ट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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