SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निद्रा त्यागो! ३७ सम्पन्न करता है। दिन के समय कोलाहलपूर्ण और अशान्त वातावरण में इन सबको न कर पाने के कारण वह व्याकुलता का अनुभव करता है तथा मात्म-साधना के लिये दिन को रात्रि मानता है। तात्पर्य यही है कि दुनियादारी में फंसे हुए लोगों के लिये रात्रि केवल रात्रि है, जो सोकर ही व्यतीत की जाती है, और दिन अर्थोपार्जन आदि अनेक प्रपंचों में पड़े रहने में समाप्त होता है । उन्हें यह विचार करने का समय ही नहीं मिलता कि आत्मा का भला किसमें है और उसके लिये क्या करना चाहिए। उनके चिंतन का विषय केवल यही रहता है कि दो पैसे अधिक कैसे पंदा किये जा सकते हैं ? और तो और रात को स्वप्न भी उन्हें इसी विषय के आते हैं । उस समय भी वे शान्ति से सो नहीं पाते। हां, धर्म-क्रियायें करते समय अर्थात् सामायिक प्रतिक्रमण करते वक्त या व्याख्यान सुनते वक्त अवश्य ही नींद आने लगती है । क्योंकि वही वक्त उनके लिये बेकार होता है। ___एक सत्य घटना है-किसी शहर में मुनिराज धर्मोपदेश दे रहे थे । एक व्यक्ति को उपदेश सुनते-सुनते ही नींद आ गई । केवल नींद ही नहीं स्वप्न भी आने लगा । स्वप्न में वह किसी ग्राहक को अपना माल दिखा रहा था और ग्राहक किसी कारण लेने में आनाकानी करता था । व्यक्ति के मुह से स्वप्न में दिखाई देने वाले ग्राहक के लिए निकला ले लो, ले लो।' पर ये शब्द उसके मुंह से इतनी जोर से निकले कि आस-पास बैठे हुए अनेक श्रोताओं ने उन्हें सुना और सब हँस पड़े। ___ उस भाई से लोगों ने पूछा-"क्या बात है ?" वह बोला--"महाराज ! स्वप्न आ गया था।" तो व्याख्यान में भी लोगों को स्वप्न आते हैं और उसमें वे अपनी दुकान चाल रखते हैं। तात्पर्य यही है कि सांसारिक प्राणी जागते हुए भी सोता है और आत्मार्थी साधक सोते हुए भी जागता है। वह स्वप्न में भी अपने कर्तव्य और चिंतन को नहीं छोड़ता। तभी वह सच्चा ज्ञान हासिल करता है और आत्मोन्नति के पथ पर अग्रसर होता है । ज्ञान प्राप्त करना बड़ी टेढ़ी खीर है। उसके लिये ज्ञानार्थी को अत्यन्त सजग और सावधान रहना पड़ता है । दिन भर खूब पेट भर खाने और रात्रि को बेफिक्र होकर सोते रहने से ज्ञान-प्राप्ति सम्भव नहीं है । ज्ञानार्थी के लिए ____संस्कृत के एक श्लोक में बताया गया है कि ज्ञानार्थी को किस प्रकार संयमी और नियमित जीवन बिताना चाहिए, अगर उसे ज्ञान प्राप्ति की उत्कट कामना है । इस विषय में कहा गया है : काक चेष्टा, बकध्यानं शुनो निद्रा तथैव च । अल्पाहारी त्यजेन्नारी विद्यार्थी पंचलक्षणः ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy