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________________ ३४ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग देर से उठते हैं। परिणाम यह होता है कि उनका चित्त सदा अस्थिर और उद्विग्न बना रहता है तथा चिन्तन, मनन और आध्यात्मिकता की ओर तो उन्मुख ही नहीं होता। इसके लिये उन्हें समय भी नहीं मिलता । इन सबके लिये उपयुक्त समय केवल प्रातःकाल अथवा ब्रह्ममुहूर्त के पश्चात् का ही होता है पर उनका वह समय सोने । व्यतीत होता है। फिर कब वे ज्ञानाराधना अथवा साधना कर सकते हैं ? रात्रि के पिछले प्रहर में वही व्यक्ति जाग सकता है जो रात्रि के प्रारम्भ में जल्दी सो जाय। जल्दी सोने का महत्त्व बहुत बड़ा माना जाता है । एक पाश्चात्य विद्वान् का कथन भी है : One hour's sleep before midnight is worth three after wards." –जार्ज हर्बट ___आधी रात के पहले की एक घण्टे की निद्रा उसके बाद की तीन घण्टे की निद्रा के बराबर होती है। लेखक के कथन का आशय यही है कि अगर व्यक्ति रात्रि के प्रारम्भ में एक घण्टे भी गहरी निद्रा में सो ले तो उसे पिछली रात्रि में दो घण्टे जागने की शक्ति हासिल हो जाती है और उस समय वह उत्साहपूर्वक ज्ञानाराधना करने के लिये तत्पर हो सकता है। समय पर कौन सो सकता है ? ___ यह प्रश्न अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है किन्तु इसके उत्तर में हम स्वयं भी सहज ही सोच सकते हैं कि जो व्यक्ति अर्थोपार्जन की चिन्ता से रहित होगा, काम भोगों की गृद्धता जिसमें नहीं होगी और जिसका चित्त शान्त होगा वह शीघ्र ही गहरी निद्रा के वशीभूत हो जाएगा। एक संस्कृत के विद्वान् ने भी कहा ब्रह्मचर्यरतेग्राम्य - सुख - निस्पृहचेतसः । निद्रा संतोषतृप्तस्य स्वकालं नातिवर्तते ॥ अर्थात्-जो मनुष्य सदाचरी है, विषयभोग से निस्पृह है और सन्तोष से तृप्त है, उसको समय पर निद्रा आये बिना नहीं रहती। वस्तुतः सदाचारी और धर्मात्मा पुरुष सदा समय पर सोते हैं और समय पर ही जागकर अपना अमूल्य समय ईश-चिन्तन एवं ज्ञानाराधना में व्यतीत करते हैं। उनकी दिनचर्या और रात्रिचर्या दोनों ही नियमित और विशुद्ध होती हैं । तथा उन्हें आत्म-साधना के मार्ग पर अग्रसर करने में सहायक बनाती हैं । संसार का प्रत्येक महापुरुष अपने शुद्धाचरण एवं नियमित चर्या के कारण ही महान् कहलाया है। नागे सो पावे और सोवे सो खोवे युगपुरुष महात्मा गांधी अपने जीवन का एक क्षण भी अतिरिक्त निद्रा अथवा प्रमाद में बिताना पसन्द नहीं करते थे। चिन्तन, मनन, और प्रार्थना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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