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________________ . निद्रा त्यागो! धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो ! . हमारे विचार-विमर्श के दौरान श्री उत्तराध्यन सूत्र के अट्ठाईसवें अध्याय की पच्चीसवीं गाथा चल रही है। इस गाथा में बताया गया है कि ज्ञान की वृद्धि होगी और उसका विस्तार होगा तो आत्मा में प्रकाश बढ़ सकेगा। ज्ञान-प्राप्ति के ग्यारह कारण होते हैं। उनमें पहला कारण है-उद्यम करना। उद्यम के विषय में मैंने आपको कल विस्तृत रूप से बताया था कि ज्ञानाभिलाषी चाहे कितना भी मन्द-बुद्धि क्यों न हो, अगर वह उधम करता रहे अर्थात् परिश्रम करना न छोड़े तो निश्चय ही ज्ञान-लाभ कर सकता है। ___ अब ज्ञान-प्राप्ति का दूसरा कारण हमें जानना है। वह है--निद्रा का त्याग करना । निद्रा-त्याग का अर्थ यह नहीं है कि उसका सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। आशय यही है कि निद्रा उतनी ही ली जाय जितनी शरीर की थकावट को मिटाने के लिये आवश्यक हो । दिन-रात घण्टों सोते रहना समय का दुरुपयोग और ज्ञान-प्राप्ति में कमी करना ही होता है। किसी विद्वान् ने भी निद्रा की निंदा करते हुये कहा है :__"अधिक निद्रा व्याधिग्रस्त की माता, भोगी की प्रियतमा एवं आलस्य की कन्या है।" ___अर्थात् -अधिक निद्रा लेने वाला व्यक्ति व्याधिग्रस्त, भोगी और आलसी हो जाता है तथा ये तीनों बातें मनुष्य की ज्ञान प्राप्ति एवं साधना में बाधक बनती हैं। इसलिए नींद उतनी ही लेनी चाहिये जितनी मस्तिष्क और शरीर की थकावट मिटाकर उन्हें स्फूर्तिदायक बनाने में अनिवार्य हो । समय पर सोना और समय पर जागना शरीर को भी स्वस्थ बनाता है तथा ज्ञान-प्राप्ति में भी सहायक बनता है। आज हम देखते हैं कि अनेक पढ़े-लिखे और अमीरों के पुत्र प्रातःकाल आठ-नौ अथवा दस बजे तक भी सोये रहते हैं। देर तक जागना और देर तक सोना उनके लिये फैशन-सा हो गया है। रात्रि को वे देर तक सैर-सपाटा करते हैं, सिनेमा देखते हैं अथवा ताश खेलते रहते हैं । स्वाभाविक ही है कि रात को बारह-एक और दो बजे तक जागने के पश्चात् वे प्रातःकाल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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