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________________ ३० आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग . अत्यावारी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है, क्योंकि विपत्ति के समय उसका कोई मित्र नहीं होता। ___ करने का अभिप्राय यही है कि अधम पुरुष अथवा निम्न श्रेणी के व्यक्ति भी उद्यम करते हैं और अपना समय व शक्ति कर्म करने में व्यतीत करते हैं । किन्तु उनके उद्यम से लाभ के बदले ह नि ही होती है । पाप-पुण्य, धमअ-धर्म अथवा परलोक को न मानने के कारण ऐसे व्यक्ति किसी भी कार्य से परहेज नहीं कर पाते और इसलिये उनका नाना प्रकार से पतन होता जाता है। कहा भी है विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुख: -विवेक से भ्रष्ट व्यक्तियों का सैंकड़ों प्रकार से पतन होता है। ऐसे व्यक्ति अपने अनुचित कार्यों पर परदा डालने के लिए असत्य भाषण, कपट, क्रोध, म याचार, अत्याचार, अनाचार, पिशुनता, शठता आदि अनेकानेक दुर्गुणों के पात्र बनते हैं तथा उनकी आत्मा कलुषिततर बनती हुई जन्मजन्म न्तर तक अपने कुकृत्यों का दुःखद परिणाम भोगती है। दूसरे प्रकार के व्यक्ति मध्यम श्रेणी के कहलाते हैं। ऐसे व्यक्ति परलोक के विषय में संदिग्ध बने रहते हैं । और कदाचित् परलोक को मान भी लेते हैं तो उसे बहुत दूर मानकर अ.ने इसी लोक के लाभों का ध्यान रखते हैं। उनका उद्देश्य केवल इस लोक में सुख से जीवन-यापन करने के लिये प्रचुर धनोपार्जन करना तथा लोगों के द्वारा सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेना ही होता है । अपना सम्पूर्ण प्रयत्न वे इसी के लिये करते हैं और उनका उद्यम इहलौकिक लाभों की प्राप्ति के लिये भी होता है । आत्मा का आगे जाकर क्या होगा उसे इस संसार-परिभ्रमण से छुटकारा कैसे मिल सकेगा इस बात की उन्हें अधिक चिन्ता नहीं रहती और इसीलिये त्याग, तपस्या तथा धर्माराधन की ओर उनकी रुचि नहीं रह पाती । सारांश यही कि मध्यम श्रेणी के ऐसे व्यक्तियों का उद्यम भी कोई शुभ फल प्रदान नहीं कर पाता और आत्मा की इस लम्बी यात्रा में सहायक नहीं होता। किन्तु तीसरी श्रेणी के पुरुष जिन्हें हम उत्तम पुरुष कहते हैं वे अपने प्रत्येक कार्य का निर्धारण केवल वर्तमान को ही लक्ष्य में रखकर नहीं अपितु भविष्य को भी सन्मुख रखकर करते हैं । वे आत्मज्ञान के द्वारा पाप और पुण्य के रहस्य को जानते हैं तथा अपनी ज्ञानमूर्ति चेतना की अनुभूति का आनन्द लेते हैं। उनकी देव, गुरु और धर्म में दृढ़ आस्था होती है । उत्तम पुरुष भली-भांति जानते हैं कि जिस प्रकार तलवार की कीमत उसकी म्यान से नहीं होती उसी प्रकार मनुष्य जीवन की कीमत मनुष्य शरीर से नहीं आंकी जा सकती। तलवार का मूल्य उसके पानी से है उसी प्रकार मनुष्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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