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पुरुषार्थ से सिद्धि
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भी है
उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥ जिस प्रकार सोये हुए सिंह के मुंह में मृग अपने आप नहीं चले जाते, उसे प्रयत्न करना पड़ता है, उसी प्रकार केवल इच्छा मात्र से कोई कार्य सिद्ध नहीं होता। उसके लिए उद्यम करना पड़ता है । ___ वास्तव में हो सफलता की कुंजी उद्यम है और उसके अभाव में मनुष्य का जीवन पशु के समान है । किसी विद्वान् ने तो यहाँ तक कहा है
"अगर तूने स्वर्ग और नरक नहीं देखा है तो समझ ले कि उद्यम स्वर्ग है और आलस्य नरक है।" सर्वाधिक लाभकारी दिशा ... हम देखते हैं कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति कर्म करता है और अपनो शक्ति के अनुसार उसमें जुट भी जाता है। किन्तु ज्ञान के अभाव में वह यह नहीं समझ पाता कि कौन-से कर्म उसके लिए अधिक लाभदायक साबित होंगे अर्थात् उसे किस दिशा में उद्यम करना चाहिए । इस विषय में हम विचार करें तो तीन प्रकार के कर्म हमारे समक्ष आते हैं और उन्हें करने वाले तीन प्रकार के व्यक्ति, जिन्हें हम उत्तम, मध्यम और निम्न पुरुष कह सकते हैं ।
निम्न श्रेणी के व्यक्ति भी कर्म करते हैं और उन्हें करने में अपनी शक्ति लगाते हैं किन्तु उनके द्वारा लाभ के बदले उन्हें हानि उठानी पड़ती है । उदाहरणस्वरूप एक व्यक्ति चोरी करता है, डाके डालता है और हत्याएँ करके भी धन का उपार्जन करता है । इन सब कार्यों में भी उद्यम करना आवश्यक . होता है । अपराधों के कारण कानून से बचने के लिये उसे न जाने कितनी . परेशानियां उठानी पड़ती हैं, कहां-कहां भटकना होता है । किन्तु उस उद्यम का परिणाम क्या होता है ? अनेकानेक कर्मों का बन्धन और नरक तथा तिर्यंचादि गतियों में नाना प्रकार के दुःखों का भोगना । इसीलिये ऐसे निकृष्ट कार्यों के लिये उद्यम करना प्राणी के लिये वर्जित है । जो व्यक्ति इस प्रकार अनाचार अथवा अत्याचार करके अपना दुर्लभ जीवन समाप्त करता है उसका परलोक में तो कोई साथ देता ही नहीं अपितु इस लोक में भी वह महान् अपयश का भागी बनता है तथा प्रत्येक व्यक्ति उसकी छाया से भी बचने का प्रयास करता है। शेखसादी ने ऐसे भाग्यहीन प्राणियों के लिये सत्य ही कहा है--
बद अख्तर तरज मरदुमाजार नेस्त । कि रोजे मुसीबत कसरा भार नेस्त ॥
-गुलिस्ताँ
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