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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
इस सम्बन्ध में हमारे धर्म-शास्त्र ज्ञान प्राप्ति के ग्यारह उपाय अथवा कारण बताते हैं जिन्हें अपनाकर मनुष्य ज्ञान हासिल कर सकता है । इनमें से पहला उपाय है-उद्यम करना । वही मनुष्य ज्ञान प्राप्त कर सकता है जो उद्यमी हो । उद्यम के अभाव में ज्ञान तो बड़ी भाली चीज है, छोटी से छोटी सिद्धि भी हासिल नहीं हो सकती। ___ हम प्राय: देखते हैं कि बिल्ली दूध पीती है । किन्तु क्या वह गाय-भैंस खरीद कर पालती है ? नहीं फिर भी दूध प्राप्त कर ही लेती है । सुबह से शाम तक वह घर-घर में घूमती-फिरती है और इस प्रकार भटकते-भटकते कहीं न कहीं उसका दाव लग जाता है । तो बिल्ली दिन भर उद्यम करती है और उसके फलस्वरूप अपने इच्छित की प्राप्ति कर लेती है।
इसी प्रकार मनुष्य को भी ज्ञान रूपी दुग्ध प्राप्त करने के लिये उद्यम करना आवश्यक है, और यह भी आवश्यक है कि उसे ज्ञान जहाँ से भी प्राप्त हो सके प्राप्त करे । संस्कृत में कहा है
"बालादपि सुभाषितं ग्राह्यम् ।” कहते हैं कि सुभाषित तो बच्चों से भी ग्रहण कर लेना चाहिये । यह विचार करना भूल है कि हम साठ वर्ष के हैं और बालक आठ ही वर्ष का है। भले ही वह आठ वर्ष का है किन्तु अगर उसने कहीं से कोई उत्तम बात सुनी और आपको आकर बता दी तो आपको अविलम्ब उसे ग्रहण कर लेना चाहिये। एक दोहे में यही बात बताई गई है
उत्तम विद्या लीजिये, यदपि नीच पं होय ।
पड़यो अपावन ठौर पै, कंचन तजत न कोय ॥ दोहे में कहा है-- मनुष्य को उत्तम वस्तु या विद्या जहाँ से भी प्राप्त हो, लेनी चाहिए चाहे वह किसी नीच से नीच व्यक्ति के पास ही क्यों न हो। जिस प्रकार गन्दे स्थ न और गन्दगी में पड़े हुये सोने को प्रत्येक व्यक्ति तुरन्त उठा लेता है, यह सोचकर वहीं पड़ा नहीं रहने देता कि यह गन्दगी में पड़ा है, इसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति उत्तम गुणों को अविलम्ब ग्रहण करने का प्रयत्न करता है चाहे वे किसी भी जाति के व्यक्ति में क्यों न हों। .
. बोध प्राप्ति
गांधार देश के राजा सिंहरथ ने, जिसे 'निग्गई राजा' भी कहा जाता था एक पेड़ के ठ से हो बोध प्राप्त कर लिया था और उसके कारण अपने समस्त कर्मों का क्षय करने में समर्थ हुए थे।
___ एक बार राजा निगाई अपने मुसाहिबों एवं सेवकों के साथ वन क्रीड़ा करने के लिए महल से रवाना हुए ! शहर के बाहर उन्होंने एक आम का वृक्ष,
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