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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग ३४७
इधर राम भी जैसा कि मैंने अभी बताया था, दान, शील, तप और भाव की चतुरंगिणी सेना के आगे नीति की ध्वजा फहराते हुए तथा स्वाध्याय के नगारे बजाते हुए युद्ध भूमि में पहुँच गये ।
सत लक्ष्मण तब धीरज धनुष ले बैठे शील रथ के माँई ।
रोस आई ||
लीगारे |
मारे ||
भारी ।
अरू बरू जब मिले आनकर, मिथ्या रावण कू अज्ञान चक्र भेजा लक्ष्मण पर जोर चला नहीं ज्ञान चक्र जब भेजा हरि ने एकदम में रावण राम लक्ष्मण को जीत भई जब जग में भया जस
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धर्म दशहरा || ||
सत्य रूपी लक्ष्मण अपने धैर्य रूपी धनुष को धारण करके शील रूपी रथ में सवार होकर आगे बढ़े। उधर से रावण भी सामने आ गया। दोनों का आमना-सामना हुआ । सत्य रूपी लक्ष्मण को देखकर मिथ्यामोह रूपी रावण क्रोध से भर गया और उसने अपना अज्ञान रूपी चक्र लक्ष्मण पर चला दिया । किन्तु अज्ञान चक्र सत्य-रूप लक्ष्मण का क्या बिगाड़ सकता था ? उसका कोई जोर नहीं चला और वह लक्ष्मण जी की प्रदक्षिणा करने लगा । रावण ने पुनः उसे अपने हाथ में लेना चाहा पर वह लौटकर नहीं आया ।
शास्त्रों में वर्णन है— अरिहन्त भगवान, चक्रवर्ती बलदेव और वासुदेव को कोई मार नहीं सकता । वे अपना समय आने पर ही चोला बदलते हैं । लक्ष्मण भी वासुदेव के अवतार थे अतः चक्र उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सका और उलटे उन्हीं के हाथ में आ गया। तारीफ की बात तो यह है कि वही अज्ञान चक्र वासुदेव लक्ष्मण के हाथ में आकर ज्ञान चक्र बन गया और फिर उसी से स्वयं रावण मारा गया। इस प्रकार राम व लक्ष्मण की जीत हुई और चारों तरफ उनका जय-जयकार होने लगा ।
उसके पश्चात् क्या हुआ ? -
सुमति सीता कू लेकर आए, मुक्ति अयोध्या राज्य करे । जन्म मरण भय दुःख मिटे, जहाँ राम राजा सो जग में खरे || सम्वत उगणीसे साल अड़तिस का पेठ आंबोरी दक्षिण माँई । विजयादसमी दिन कोवि लावणी, समझदार के दिल माँई ॥ तिलोक रिख कहे सत्य रामायण धर्म पर्व यों सुखकारी । दशहरा -
धर्म
॥१०॥
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