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________________ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग ३४५ . मिथ्यामोह रावण के पास वो सुमति सीता की करी बड़ाई । सुना बहुत तब लालचवश वहाँ चल आया लंका साँई ॥ छल विद्या का नाद सुनाकर, सुमति सीता किवी है चोरी । राम लक्ष्मण जब जाना भेद ए, सोचे अब लानी है दोरी ।। झूठ साहस गति दृष्टि है उसकी सत लक्ष्मण की कारी स्वारी। धर्म दशहरा......॥६॥ अब कूमति रूपी शूर्पनखा अपने भाई मिथ्यामोह रूप रावण के समीप आई और उसके समक्ष धर्म रूपी राम की सुमति रूपी पत्नी सीता के सौन्दर्य की अत्यधिक प्रशंसा करने लगी। एक कहावत है 'करेला और नीम चढ़ा।' रावण वैसे ही महान् अहंकारी और अपनी शक्ति के नशे में चूर रहने वाला था। सोचने लगा-संसार की सर्वोत्तम वस्तुएँ मेरे पास ही होनी चाहिए।' अगर सीता इतनी रूपवती है तो उसे मेरे ही अन्तःपुर की शोभा बढ़ानी होगी। प्रत्यक्ष में बहन से बोला- “ऐसी बात है तो मैं सीता को बात की बात में ले आता हूँ।" कहने के अनुसार उसने किया भी। पर राम व लक्ष्मण वासुदेव तथा बलदेव के अवतार थे, अतः महान शक्तिशाली होने पर भी उसकी दाल उनके समक्ष नहीं गल सकती थी। अतः उसने बनावटी शंखनाद किया और राम लक्ष्मण के दूर चले जाने पर पीछे से सीता को उठाकर ले गया। जब रामचन्द्रजी और लक्ष्मण लौटे तथा सीता को अपनी कुटिया में न पाया तो भारी शोक और चिन्ता में डूब गये तथा सीता की खोज करने लगे। खोज के दरम्यान घायल जटायु पक्षी के द्वारा पता चला कि सीता को रावण उठाकर ले गया है । इसके अलावा एक और भी बड़ी बात यह हुई कि मार्ग में नकली सुग्रीव और असली सुग्रीव की लड़ाई हो रही है तथा असली सुग्रीव पर जादती की जा रही है । तो राम ने लक्ष्मण को इशारा किया और लक्ष्मण ने नकली सुग्रीव को मारकर असलो सुग्रीव को सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्त कर दिया। अब देखिये कि उसका क्या परिणाम हुआ ? सन्तोष सुग्रीव जब भया पक्ष पर बहोत भूप उसकी संगे। जाम, जांबुबाहन नील नलादिक सुमन मान हनुमत अंगे ।। खबर लाया वो समति सीता को बहुत जोरावर दुनिया में । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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