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विजयदशमी को धर्ममय बनाओ !
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हुआ। पर कैकेयी के वरदानों को देने के लिए वचनबद्ध होने के कारण एक दिन धर्म रूपी राम, सत्य-रूपी लक्ष्मण और सुमति रूपी सीता तीनों ही वन में चले गए। वन हम कौन-सा.लेंगे ? संयम, रूपी, अर्थात् संयम रूपी वन में धर्म, सत्य और सुमति तीनों गये ।
एक बार उस वन में विचरण करते समय लक्ष्मण की दृष्टि उस सूर्य हंस खड्ग पर पड़ी जो साधनारत शंबुक की साधना के बल पर उसी समय उसके लिए आया था।
खड्ग को देखते ही लक्ष्मण के चित्त में कौतूहल उपजा कि यहां ऐसी कौन-सी चमकदार वस्तु पड़ी हुई है उन्होंने उसे उठाने के लिए हाथ बढ़ाया और लक्ष्मण स्वयं भी वासुदेव के अवतार थे अतः हाथ बढ़ाते ही खड्ग उनके हाथ में आ गया । संयोग की बात थी कि उस अमूल्य वस्तु के लिए बारह वर्ष से साधना तो शंबूक कर रहा था पर वह हाथ लगा लक्ष्मण के । ___ खड्ग ज्योंहि लक्ष्मण के हाथ में आया उन्होंने सोचा है तो यह सुन्दर खड्ग ही पर कुछ कार्य भी करता है या नहीं ? यह देख तो ल । अर्थात् कहीं यह केवल गरजने वाले बादल के समान ही तो नहीं है कि चमकदार होते हुए भी इसमें धार ही न हो । इस भाव से उन्होंने सहज भाव से उस खड्ग को उमी झाड़ी पर चला दिया जिसके अन्दर शंबूक ओंधे मुह लटका हुआ था। पैर ऊपर थे और सिर नीचे । खड्ग चला और उससे झाड़ी समेत पल भर में शंबूक का मस्तक भी कट गया ।
मस्तक के धड़ से अलग होते ही लक्ष्मण की दृष्टि उस ओर गई कि उनके हाथ से यहाँ अनर्थ हो गया है अर्थात् एक पुरुष मारा गया है तो उन्हें अपार खेद हुआ और अनजान स्थिति में मारे जाने वाले व्यक्ति की पहचान का प्रयत्न करने लगे कि यह कौन है ? इतने में ही शूर्पनखा पुत्र के लिये खाना लेकर आई पर उसको मृत देखते हो विलाप करने लगी तथा लक्ष्मण को नाना प्रकार से उपालम्भ देने लगी। लक्ष्मण ने अपने अज्ञान दशा में किये गये अपराध के लिये शूर्पनखा से बारम्बार क्षमायाचना की तथा आन्तरिक-खेद प्रकट किया।
किन्तु पुत्र-शोक से विह्वल शूर्पनखा महाक्रोध से भी भर गई और अविलम्ब घर जाकर अपने पति और देवर से बोली-"कैसा राज्य करते हो तुम ? तुम्हारे राज्य में ही मेरे निरपराध पुत्र को लक्ष्मण ने मार डाला। धिक्कार है तुम्हें।"
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