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________________ विजयादसमी को धर्ममय बनायो ! ३३७ विजयादसमी दिन विजय करोतुम ज्ञान दृष्टि कर नर नारी । धर्म दशहरा करलो उमंग से, मिथ्या मोह--रावण मारी ।। टेर । कवि ने मुमुक्षु को प्रेरणा दी है- इस विजयादसमी के दिन तुम भी.. विजय प्राप्त करो, यशस्वी बनो ! पर कैसे यशस्वी बनना और किस प्रकार विजय प्राप्त करना ? उत्तर भी पद्य में ही है कि इस दशहरे को तुम मिथ्यात्व रूपी रावण को मारकर धर्म दशहरे के रूप में मनाओ । यद्यपि बाह्य शत्रओ को मारना भी सहज नहीं है उसके लिये भी साहस और शक्ति की आवश्यकता है किन्तु आन्तरिक शत्रु तो इतने जबर्दस्त होते हैं कि उन्हें जीतना अत्यन्त ही कठिन है तथा उसके लिये महान् आध्यात्मिक बल और साधना की आवश्यकता है। तो सम्यकत्व की प्राप्ति करना, अपनी श्रद्धा मजबूत बनाना तथा मोह एवं मिथ्यात्व रूपी रावण का जोतना ही मुक्ति के इच्छुक के लिये सच्ची विजयादसमी मनाना है । कवि ने आगे कहा है : ए संसार. सागर के अन्दर कर्म रूप अब थव पानी । भर्म रूप पड़े भंवर इसी में, डूब जात जहाँ जग प्राणी ॥ तीन दण्ड त्रिकूट द्वीप है, लालच लंका बंक बणी । महामोह रत्नश्रवा नामक राक्षस राजा इसमें धणी ॥ क्लेस केकसी राणी है उसकी अकलदार समझो जहारी । धर्म दशहरा..........॥ १ ॥ इस संसार रूपी समुद्र में कर्म-जल लबालब भरा हुआ है । प्रत्येक प्राणी कर्मों के इस जल में डबता उतराता रहता है । कोई जिज्ञासु प्रश्न करेगासमुद्र में तो भँवर होते हैं, फिर इस संसार-सागर में भंवर कौन से हैं ? उत्तर है-इस संसार समुद्र में भर्म रूपो भँवर बड़े जबर्दस्त हैं । स्वर्ग कहीं है या नहीं ? नरक भी वास्तव में है या यों ही व्यक्ति डरते रहते हैं इसी भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति भंवर में फंस जाते हैं तथा पतन की ओर अग्रसर होते हुए पूर्णतया डूब जाते हैं । पद्य में आगे कहा है-'तीन दण्ड त्रिकूट द्वीप है।' कौन से दण्ड और त्रिकूट ? मन, वचन और काया ये तीन दण्ड हैं । किसी जीव को काया योग है, किसो को मन योग और किसी को वचन योग है । यही तीन त्रिकूट आध्यात्मिक दृष्टि से कहे जाते हैं । अब पूछा लंका कौन सी है ? उत्तर दिया है -लालचरूपी लंका बनी वर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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