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________________ १८ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग हृदय में अनेकों उत्तम भावनाओं का भंडार रखकर भी तूने उनका उपयोग नहीं किया तो मानव तन पाने का तूने क्या लाभ उठाया ? यह मत भूल किजीवितं सफलं तस्य य. परार्थोद्यत: सदा। -ब्रह्मपुराण उसी का जीवन सफल माना जाता है जो परोपकार में प्रवृत्त रहता है। सेवा परोपकार का हो दूसरा नाम है। सेवाव्रती को नि:स्वार्थ भाव से संत-महात्माओं को, धर्म गुरुओं की, गुरुजनों की एवं दुःखी, दर्दा द्र और पीड़ितों की सेवा करनी चाहिये । जो ऐसा करते हैं वे वास्तव में ही अत्मिक रोगों को नष्ट करने वाली औषधि का सेवन करते हैं तथा जन्म-मरण के दुःखों से छुटकारा प्राप्त करके अनन्त सुख के अधिकारी बनते हैं। दोनों दवाओं के लिये परहेज ___ बंधुओं, आपने जन्म-मरण के कष्टों से मुक्ति प्राप्त करने की दो औषधियों के विषय में तो जान लिया किन्तु अब यह जानना भी आवश्यक है कि उन औषधियों के साथ परहेज कौन-कौन से रखने चाहिये ? क्योंकि कोई भी दवा कारगर तभी होती है जबकि उसके अनुकूल परहेज भी रखा जाये । परहेज न रखने से दवा कभी ठीक असर नहीं कर पाती। परहेज और पथ्य ही दवा को शक्तिशाली बनाते हैं । संस्कृत के एक विद्वान् ने तो पथ्य को दवा से भी अधिक गुणकारी बताया है । कहा है औषधेन विना व्याधिः पथ्यादेव निवर्तते । न तु पथ्यविहीनस्य, भेषजानां शतरपि ॥ श्लोक में बताया है--बीमारी कभी-कभी बिना औषधि लिए केवल उचित परहेज और पथ्य का ध्यान रखने से भी ठीक हो सकती है, किन्तु पथ्य के अभाव में तो सैकड़ों औषधियां लेने पर भी उसे ठीक नहीं किया जा सकता। अर्थात्--दवा नहीं ली पर परहेज रखा तो दो दिन बाद ही सही पर बीमारी स्वयं ही ठीक हो जायेगी किन्तु दवा लेकर भी अगर परहेज सहित पथ्य का सेवन न किया तो वह दवा लेना निरर्थक होगा। इसलिये अब हमें देखना है कि सांसारिक कष्टों से निवृत्ति पाने के लिये बताई गई दोनों दवाओं के साथ परहेज कौन-कौन से बताए गए हैं ? परहेज भी दो प्रकार के बताए गए हैं जिनमें से प्रथम के विषय में कहा है-- ___ "धर्म पायने वमियो, तेनी संगम वरजे।" धर्म को ग्रहण करके भी जिसने पुनः उसे त्याग दिया हो यानी धर्म-मार्ग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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