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________________ सुनकर हृदयंगम करो ३१५ पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे सम्पूर्ण राग और द्वष का नाश करके सिद्धि को प्राप्त हो गए यही मैं कह रहा हूँ।" इस गाथा में सर्वप्रथम बुद्ध शब्द आया है। इस शब्द का अर्थ आपको बौद्ध धर्म के प्रचारक बुद्ध से नहीं, अपितु भगवान महावीर से ही लेना है । बुद्ध किसे कहते हैं और महावीर के लिए इसका प्रयोग क्यों किया गया है इस विषय में कहा है - "बुद्धस्य-केवलालोकावलोकित समस्त वस्तुतत्वस्य प्रक्रमाच्छीमन्महावीरस्य ।" अर्थात्--जिसने केवल ज्ञान के द्वारा समस्त लोक के पदार्थों को जान लिया है वह बुद्ध होता है अतः भगवान महावीर के लिये ही बुद्ध विशेषण आया है। भगवान महावीर का दिया हुआ सदुपदेश अगर मुमुक्ष ग्रहण करे तो वह निश्चय ही परम शान्त और किसी भी प्रकार के दु:ख से रहित अनन्त सुख रूप मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। पर ग्रहण करना ही तो महा कठिन है । वीतराग के वचनों को इस कान से सुनकर इस कान से निकाल दिया जाय तो उन्हें सुनने से क्या लाभ हो सकता है ? लाभ तभी हासिल हो सकता है जब कि शास्त्रों की वाणी को कान से सुनकर हृदय में उतारी जाय । अन्यथा सुना नहीं सुना समान है, लाभ कुछ नहीं। आप कहेंगे- 'हमने गँवाया क्या ?" अरे भाई ! सर्वप्रथम तो आपने वर्तमान समय ही गँवाया और आचरण नहीं किया तो भविष्य के लिये कुछ इकट्ठा नहीं किया। फिर दोनों ही तरफ से गये या नहीं ? किसी बात को सुनकर हृदयंगम करने से कितना लाभ होता है और व्यक्ति का कितना महत्व बढ़ जाता है यह एक उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है । आपने भी उसे समय-समय पर सुना ही होगा। लाख रुपये की मूर्ति एक शिल्पकार तीन मूर्तियाँ बनाकर किसी राजा के दरबार में लाया। मूर्तियाँ तीनों ही अत्यन्त सुन्दर थीं और देखने में हूबहू एक ही जैसी दिखाई देती थीं । राजा को वे बड़ी पसन्द आई और उन्होंने कलाकार से उनका मूल्य पूछा। कलाकार ने एक-एक मूर्ति की ओर इंगित करते हुए उत्तर दिया-- "महाराज ! इस मूर्ति का मूल्य एक कोड़ी है, इसका एक रुपया और इस तीसरी का मूल्य एक लाख रुपया है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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