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________________ धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो ! किन्तु बड़ों का फर्ज ही कई दिनों से हमारा विषय श्री उत्तराध्ययन सूत्र की उन गाथाओं को लेकर चल रहा है जिनमें भगवान महावीर ने अपने सबसे बड़े शिष्य गौतम स्वामी को अमूल्य शिक्षाएँ प्रदान की हैं । इससे यह साबित नहीं होता है कि गौतम अज्ञानी थे या वे उन बातों को जानते नहीं थे, यह होता है कि वे छोटों को सदा सावधान और सतर्क करते रहें । आप जानते ही हैं कि आपका पुत्र पढ़ने के लिये विदेश जाता है और विदेश जाने वाला स्वयं ही समझदार तथा होशियार होता है फिर भी आप लोग ट्र ेन में बैठते-बैठते भी उसे कहते हैं रास्ते में सावधानी से रहना, खाने-पीने का ध्यान रखना, फिजूल खर्च मत करना और किसी बुरे व्यक्ति की संगति मत करना, आदि आदि । २६ सुनकर हृदयंगम करो इसी प्रकार भगवान ने अपने चौदहपूर्व का ज्ञान रखने वाले शिष्य गौतम को भी पुन: पुन: आत्म-कल्याणकारी शिक्षाएँ दी हैं जिनमें से के कुछ विषय में हम कई दिनों से जानते आ रहे हैं। आज हम इस शास्त्र के दसवें अध्याय की अन्तिम गाथा को देखेंगे जिसमें रचयिता ने स्वयं अपना मंतव्य प्रगट किया है - -- Jain Education International बुद्धस्स निमम्म भासियं, सुकहियमट्ठ पओवसोहियं रागं दोसं च छिंदिया, कहा है- "सुन्दर अर्थ एवं महावीर स्वामी की उत्तमोत्तम सिद्धिगई गए गोयमे । त्ति बेमि । — उत्तराध्ययन सूत्र १०-३७ पदों से सुशोभित - बुद्ध (तत्त्वज्ञ ) भगवान शिक्षाओं से निहित तत्त्वों का गौतम स्वामी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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