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वमन की वाञ्छा मत करो
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"अरे मूर्ख ! तू यह भी नहीं सोचता कि बावने चन्दन को जला देने पर उसका क्या मूल्य रह जाता है ? केवल राख ही तो हाथ आती है। इसी प्रकार चार-चार महाव्रतों को कष्ट कर देने पर क्या हाथ आने वाला है ? उल्टा तेरे महान कुल में दाग लग जाएगा । इसलिये अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है अत: सभल जा और अपने व्रतों का, त्याग का तथा बात का ध्यान रखते हुए मन में आए हुए विचारों पर सच्चे हृदय से पश्चात्ताप कर तथा संयम की अविचल साधना कर ।"
साध्वी राजीम्ती की बात सुनकर रथ नेमि जो कि वासना के क्षणिक प्रवाह में बह जरूर गया था किन्तु कुल न और सुलभ-बोधि थ अत: उसी वक्त चेत गया। राजीमती की बातें सुनते ही उसकी आँखें खुल गई और उसने अपनी निकृष्ट भावनाओं के लिए घोर पश्चात्ताप करते हुए शुद्ध हृदय से क्षमा याचना की तथा उसके पश्चात् घोर तपस्या करके आत्म-कल्याण किया। - मन की इसी प्रकार की चंचलता का विचार करते हुए भगवान ने उपदेश दिया है कि संसार की जिन वस्तुओं का और भोगों का त्याग कर दिया जाय उन्हें किये हुए वमन के समान मानकर पुनः ग्रहण करने की इच्छा कदापि नहीं करनी चाहिए । आज तक जिन भव्य प्राणियों ने मोक्ष प्राप्त किया है, वह कर्म से, धन से अथवा सन्तान से नहीं अपितु त्याग के द्वारा ही उसे पाया है । इसलिए जिस वस्तु का त्याग कर दिया जाय उसकी पुनः वचन और शरीर से ही नहीं, अपितु मन से भी कामना नहीं करनी चाहिए । त्याग और नियम अंगीकार करने पश्चात् उनका पालन करने से ही कल्याण हो सकता है। ___ कहने का अभिप्राय यही है कि कोई भी व्रत-नियम धारण कर लिया जाय तो फिर चाहे जैसे उपसर्ग और कष्ट क्यों न आये उन्हें छोड़ना नहीं चाहिए। छोटे से छोटा नियम ग्रहण करके भी उन्हें छोड़ने से अनन्त कर्मों का बंध होता है तो फिर चार महाव्रतों को धारण करके छोड़ने वाले की तो क्या दुर्दशा होगी इसका अनुमान लगाना भी असम्भव है। ___ कुण्डरिक और पुण्डरिक के विषय में तो आप जातते ही हैं । पुण्डरिक को राज्य मिलता है तथा कुण्डरिक दीक्षित हो जाते हैं किन्तु वर्षों संयम पालन करने के पश्चात् भी वे विचलित हो जाते हैं तथा नरक के बँध-बाँध लेते हैं । ज्ञाता धर्मकथा सूत्र में तो यहाँ तक वर्णन आता है कि उन्होंने ग्यारह अंगों का ज्ञान किया था किन्तु कर्मों की गति विचित्र है। स्थविर महाराज के साथ विहार करते हुए उनके शरीर में व्याधि उत्पन्न हो जाती है और उसी नगर में उनका इलाज होता है, जहाँ उनका भाई पुडरिक राज्य करता था। राजा ने मुनि कुण्डरिक का इलाज स्थविर महाराज की आज्ञा से किया।
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