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समय से पहले चेतो
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो!
श्री उत्तराध्ययन सूत्र के दसवें अध्ययन की छब्बीसवीं गाथा में भगवान् महावीर ने फरमाया है
परिजूरइ ते सरीरयं
केसा पंडरया हवंति ते। से सव्वले य हायई,
समयं गोयम मा पमायए । अर्थात-हे गौतम ! तेरा शरीर सब प्रकार से जीर्ण हो रहा है। तेरे बाल श्वेत हो गए हैं और सभी बल क्षीण होता जाता है, अतः अब समय-मात्र का भी प्रमाद मत कर।
बन्धुओ ! मैं पहले भी आपको बता चुका है कि भगवान का उपदेश केवल गौतम स्वामी के लिये ही नहीं था अपितु उस सयय भी मनुष्य मात्र के लिए था आज और आज भी सबके लिए है।
वास्तव में ही वृद्धावस्था जीवन की अन्य सब अवस्थाओं से निकृष्ट या दयनीय है । इस अवस्था में समस्त इन्द्रियां क्षीण हो जाती हैं और वे अपने अपने कार्य में अयोग्य हो जाती हैं।
श्रोत्रेन्द्रिय जो कि अपने समय में क्षीण से क्षीण आवाज को भी ग्रहण कर लेती है, वृद्धावस्था में समीप आकर जोर-जोर से चीखने पर भी पूरे शब्द ग्रहण नहीं कर पाती । एक छोटा सा उदाहरण है... एक बहरा और वृद्ध आदमी एक गांव से दूसरे गांव में जा रहा था। साथ में वह अपनी गाड़ी में बैंगन भरकर ले जा रहा था।
वह गाँव से थोड़ी ही दूर गया था कि उसका परिचित दूसरा मित्र मिल गया । उसने पूछा -“दादा ! कहां जा रहे हो ?"
वृद्ध बहरा तो था ही दोस्त की बात सुन नहीं पाया। बोला-गाड़ी में बैंगन भरकर ले जा रहा हूँ।"
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