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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
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फानो का अर्थ है नाशवान । तो कवि कहता है--यह जीवन एक वृक्ष के समान नाशवान है । कोई व्यक्ति प्रश्न करता है - जीवन और वृक्ष में समानता कैसे हुई ? बचपन, जवानी और बुढ़ापा क्या ये तीनों चीजें वृक्ष में पाई जाती हैं ?
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इसका उत्तर देने वाला व्यक्ति भी कम चतुर नहीं है । वह बताता हैजब वृक्ष उगता है, उसमें सर्व प्रथम कोमल पत्ते आते हैं, इसी प्रकार मनुष्य का बचपन होता है, इसके पश्चात् वृक्ष में बड़ी-बड़ी और पुष्ट डालियाँ आती हैं वह मनुष्य की जवानी के समान कहलाती हैं । फल, फूलों और सुदृढ़ शाखाओं से भरपूर वृक्ष प्रत्येक मन को मुग्ध कर लेता है तथा प्रत्येक प्राणी उससे फल प्राप्ति की तथा उसकी छाया में विश्राम करने की इच्छा करते हैं । इसी प्रकार जब व्यक्ति पूर्ण युवावस्था को प्राप्त कर लेता है तो उसके स्नेही, स्वजन तथा पुत्र, पुत्री, पत्नी, पिता अथवा माता उसे अनेक प्रकार की आशाएँ रखते हैं और मनुष्य की वह अवस्था अन्य दोनों अवस्थाओं से भिन्न तथा अहंकार से भरी हुई होती हैं । उसे गर्व होता है कि मैं इन सबका पालन-पोषण करता हूँ तथा सबका आश्रय रूप हूँ । किन्तु क्या वह युवावस्था भी सदा टिकती है ? नहीं, उसके लिए यही कहा जा सकता है
रहती है कब बहारे जवानी तमाम उम्र । मानिन्द बू गुल, इधर आई उधर गई ||
अर्थात् - जवानी की बहार क्या सम्पूर्ण उम्र तक बनी रहती है ? वह तो फूल की खुशबू के समान इधर से आती है और उधर चली जाती है ।
आशय कहने का यही है कि युवावस्था भी स्थायी नहीं रहती तथा जिस प्रकार वृक्ष कोमल कोंपलों से बढ़कर ह्रा-भरा तथा फल और फूलों से एक दिन लद जाता है । किन्तु अन्त में पतझड़ के आते ही उसके हरे पत्ते पीले पड़ जाते हैं, और उन सबके झड़ जाने से वृक्ष ठूंठ के सम न खड़ा रह जाता है तथा कुछ समय पश्च त् उखड़कर धराशायी होता है । उसी प्रकार युवावस्था की रंगीनियों में भूला हुआ प्राणी अल्पकाल में ही समस्त राग-रंग से हाथ धोकर जरावस्था को प्राप्त करता है ।
वृक्ष के पतझड़ के समान ही मनुष्य वृद्धावस्था में पूर्णतया शक्तिहीन हो जाता है जिस प्रकार वृक्ष के पत्ते पीले पड़ जाते हैं, उसी प्रकार मनुष्य का शरीर कमजोर हो जाता है तथा त्वचा झुर्रियों से भर जाती है, इन्द्रियाँ निर्बल हो जाती हैं तथा सम्पूर्ण शरीर जर्जर हो जाता है ।
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