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________________ २३० आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग बड़ों का कार्य है छोटों को समझदार एवं बुद्धिमान समझकर भी उन्हें सदुपदेश देना आपको अनुभव भी होगा कि जब आपका पुत्र व्यवसाय सम्बन्धी कार्य करने के लिए यानी माल खरीदने या बेचने के लिए जाता है तो आप उसे घर पर और स्टेशन पर ट्रेन में बैठते-बैठते तक भी चेतावनी देते हैं--' बेटा ! जोखिम साथ है । बहुत रुपये-पैसे पास में हैं अत. बड़ी सावधानी रखना, अधिक निद्रा मत लेना, सजग रहने का प्रयत्न करना।" __ ऐसा आप क्यों कहते हैं ? आप जानते हैं कि आपका पुत्र होशियार है, और अपने कार्य में चतुर है । अन्यथा आप उसे धन व अन्य जोखिम का सामान देकर भेजते ही क्यों ? किन्तु फिर भी आपका मन उसे शिक्षा देने का होता है अतः बार-बार सावधान रहने की प्रेरणा देते हैं । पिता अपने समस्त बेटों को कोई बात कहना चाहता है तो वह बड़े लड़के को सम्बोधित करके ही वह बात कहता है । ससुर बहुओं को उपदेश देना चाहता है तो अपनी पुत्री को सीख देता है ताकि बहुएँ उसे सुनकर स्वयं ही उस हित-शिक्षा को ग्रहण कर सकें। इसीलिए भगवान महावीर ने अपने प्रिय एवं सबसे बड़े शिष्य गौतम को प्रमाद न करने की शिक्षा दी जो आज भी हमारे और आप सबके लिए उतना ही महत्व रखती है। एक दृष्टान्त और भी आपके सामने रखता हूँ--वासुदेव के अवतार श्रीकृष्ण ने महाभारत में युद्ध के समय अर्जुन को उपदेश दिया था। जोकि आज विश्वविख्यात गीता के रूप में हमारे समक्ष है। किन्तु क्या वह केवल अर्जुन के लिए ही था ? नहीं, वह उपदेश उस समय भी प्रत्येक व्यक्ति के लिए था और आज भी प्रत्येक व्यक्ति के लिये है। अन्यथा क्यों घर-घर में 'भागवतगीता' पढ़ी जाती ? मुस्लिम धर्म में कुरान सर्वोच्च और पवित्र ग्रन्थ माना जाता है । हजरत मोहम्मद ने जिन्हें मुसलमान अपना पंगम्बर मानते हैं अ. ने चार दोस्त हजरत अली, हजरत अबूबकर आदि को जो उपदेश दिया वह कुरान शरीफ के रूप में है । पर क्या वह उपदेश उन्होंने केवल अपने दोस्तों को ही दिया था ? नहीं, आज उसका एक-एक शब्द प्रत्येक मुसलमान के लिये ब्रह्मवाक्य के समान है और प्रत्येक मुसलमान उसका प्रगाढ़ श्रद्धा और भक्ति से पारायण करता है। ___ कहने का अभिप्राय यही है कि भगवान महावीर ने गौतमस्वामी को सम्बोधन करके काल का एक समय भी व्यर्थ न गंवाने का जो उपदेश दिया है वह आज हम सबके लिए है और हम सभी को प्रमाद का त्याग करके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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