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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
चाहिए । निरर्थक वाद-विवाद तथा बे सिर-पैर की बातें करने से कुछ भी लाभ हासिल नहीं होता, उलटे समय की हानि होती है तथा अनर्गल राग-रंग और विषयत्तेजक बातों के करने से भावनाओ में विकृति आती है तथा कर्मों का बंधन होता है।
इधर-उधर की बकवाद करना पानी को बिलोने के समान है। जिस प्रकार घण्टों, दिनों और महीनों भी पानी को बिलोया जाय तो उसमें से मक्खन की प्राप्ति नहीं होती, उसी प्रकार व्यर्थ की बातें करने से कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता।
__इसके अलावा इसी जिह्वा से अगर कटु शब्दों का उच्चारण किया जाय तो कभी-कभी बड़ी खून-खराबी, मार-काट और हत्याएँ भी हो जाया करती हैं । एक पाश्चात्य विद्वान् ने कहा भी है--
“No sword bites so fiercely as an evil tongue.”
-पी. सिडनी
कोई तलवार इतना भयानक घाव नहीं करती जितना कि एक बुरी जिह्वा ।
___ इसलिए बंधुओ ! हमें अपनी जबान को व्यर्थ की बकवास में नहीं लगाए रहना है तथा उसके द्वारा किसी का दिल दुःखाकर कर्म-बंध भी नहीं करना है । इससे हमें लाभ उठाना है और वह तभी मिल सकता है, जबकि हम इसे प्रभु-भक्ति में लगाए रहें, इसके द्वारा दीन-दुखियों को सान्त्वना प्रदान करें तथा अपनी मधुर वाणी से औरों के दुःख-भार को कुछ न कुछ हल्का करे । जिह्वा की महत्ता को समझने वाला ज्ञानी पुरुष कभी भी उसका गलत उपयोग नहीं करता तथा उसकी सहायता से नाम-स्मरण कर अपने असख्य कर्मों की निर्जरा करके आत्मा को नाना प्रकार के कष्टों से बचाता है ।
पूज्यपाद श्री अमीऋषि जी महाराज ने भी ईश-भक्ति या प्रभु का नाम लेने से होने वाले लाभ के विषय में कहा है--
प्रभु नाम लिए सब विघन विलाय जाए,
___ गरुड़ के शब्द सुन त्रास होत व्याल को। महामोह तिमिर पुलाय यों दिनेश उदे,
मेघ बरसत दूर करत दुकाल को॥
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