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इन्द्रियों को सही दिशा बताओ
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महाभारत में कहा गया है :
अधृष्या सर्वभूतानामायुष्मान्नो रुजः सदा । भवत्यभक्षयन्मांसं दयावान्प्राणिनामिह ।। हिरण्यदान र्गोदान मिदानश्च सर्वशः ।।
माँसस्याभक्षणे धर्मो, विशिष्ट इति न श्रुतिः ।। अर्थात् -जो व्यक्ति मांसभक्षण न करके प्राणियों के विषय में दयावान् होते हैं वे सबसे मानवीय, आयुष्मान और रोग से रहित होते हैं। हमारी यह श्रुति है कि मोने का दान तथा गायों के दान की अपेक्षा माँस-भक्षण का त्याग करने से विशिष्ट धर्म होता है। ___ कहने का अभिप्राय यही है कि जो भव्य पुरुष अपनी आत्मा को ऊँचा उठाना चाहते हैं, अपने ज्ञान को निर्मल बनाते हुए उसमें अधिकाधिक वृद्धि करना चाहते हैं उन्हें अपनी जिह्वाइन्द्रिय पर पूर्ण नियन्त्रण रखते हुए शुद्ध और सात्विक आहार के द्वारा अपनो बुद्धि को कुशाग्र बनाना चाहिए।
घ्राणेन्द्रिय यह मनुष्यों को सुगन्ध और दुर्गन्ध की पहचान कराती है । सुगन्ध सभी व्यक्तियों को प्रिय लगती है और भक्त तो ताजे पुष्प, अगर एवं चन्दनादि के द्वारा अपने इष्ट को भी प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं ।
किन्तु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो इन बातों की ओर ध्यान दिये बिना दुर्गन्ध को भी सुगन्ध मानकर अपने आपको उसी में रमा लेते हैं । प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि का सेवन करने वाले उन वस्तुओं की सुगन्ध को भी सुगन्ध मानते हैं । मदिरा-पान करने वाले ‘यक्ति के पर बरबस ही मद्मशाला की ओर बढ़ जाते हैं और उसे भले ही मद्य पीने के लिए न मिले, उसकी सुगन्ध पाकर भी वह मस्त हो जाता है। ऐसा व्यक्ति कभी अपने जीवन को निर्मल नहीं बना पाता । ____ स्पर्शेन्द्रिय—यह मनुष्य की पांचवीं इन्द्रिय है । स्पर्श करते ही इसे वस्तु की कठोरता, कोमलता तथा चिकने पन या खुरदरेपन का आभास हो जाता है। जो व्यक्ति इसके वश में होते हैं, वे विलासी कहलाते हैं । ऐसे व्यक्ति कठोर शैय्या पर नहीं सो सकते, मोटा कपड़ा नहीं पहन सकते और खुरदरा वस्त्र ओढ़ नहीं सकते।
किन्तु साधक, त्यागी या सन्त ऐसी बातों की परवाह नहीं करते । उन्हें पहनने को रेशम मिले या मृगछाला, बिछाने के लिये पुष्पों की शय्या हो या पथरीली भूमि, ओढ़ने के लिये मुलायम चद्दर हो या टाट सभी समान होते हैं । इस प्रकार की वस्तुओं के प्रति उदासीनता रखते हुये वे अपना चित्त ज्ञान-ध्यान और साधना में लगाते हैं।
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