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________________ १३४ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग वैष्णव धर्मग्रन्यों में एक गणिका का उदाहरण आता है । उस गणिका का नाम पिङ्गला था। कहा जाता है कि एक दिन वह अपूर्व शृङ्गार करके अपने प्रेमी की प्रतीक्षा में बैठी रही । किन्तु महान प्रतीक्षा के बावजूद भी वह आधी रात तक नहीं आया तो पिङ्गला को बड़ी ग्लानि हुई । उसने सोचा-जितना समय आज मैंने इस व्यक्ति की प्रतीक्षा में बर्बाद किया उतना अगर ईश्वर के भजन में लगाती तो मेरा शयद कल्याण हो जाता। यह विचार आते ही उसने उसी क्षण से वेश्यावृत्ति का त्याग कर दिया ' और अपने मन को संपूर्णत: भगवद्भजन में लगाया । परिणाम यह हुआ कि उसके समस्त पाप नष्ट हो गए और उसकी आत्मा का उद्धार हो गया। कहने का अभिप्राय यही है कि असंख्य पापों का उपार्जन करने वाली वेश्या भी भोगों से विरक्त होकर संसार-मुक्त हो गई तो फिर संसार में ऐसा कौन सा व्यक्ति है जो अपनी आत्मा का उद्धार नहीं कर सकता ? पर इसके लिये धर्म पर सच्ची श्रद्धा और सम्यक् ज्ञान की आवश्यकता है। अगर व्यक्ति सही ज्ञ न प्राप्त नहीं करेगा तो उसे मोक्ष-प्राप्ति का सच्चा मार्ग नहीं मिल पाएगा और वह इन सांसारिक लब्धियों में उलझकर पुन-:पुनः संसार भ्रमण करता रहेगा। सम्यक ज्ञान की प्राप्ति कैसे हो? ___ अब हमारे सामने प्रश्न यह है कि मुमुक्षु सच्चा ज्ञान कैसे प्राप्त करे ? सच्चे ज्ञानदाता की पहचान करना कठिन है पर असंभव नहीं। सच्चा ज्ञान वही है जो आत्मा को शुद्धि की ओर ले जाय तथा उस ज्ञान को प्रदान करने वाला ज्ञानवंत कहला सकता है। हमारा आज का विषय भी यही है कि ज्ञानवंत के पास पढ़े तो सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। वैसे देखा जाय तो हमारे लिये सच्चे ज्ञ नदाता आगम और जिन वचन हैं किन्तु किसी भी अज्ञानी व्यक्ति का उनसे सीधा संपर्क करना कठिन होता है । जब तक आगमों में निहित ज्ञान को कोई ज्ञानवान सरल और समझा कर न बताए, तब तक उनसे कुछ हासिल करना कठित होता है । और आगमों के ज्ञान को स्कूलों अथवा कॉलेजों के शिक्षक और प्रोफेसर नहीं पढ़ाते उन्हें तो स्वयं आत्म-साधना के पथ पर चलने वाले साधु पुरुष हो समझा सकते हैं । शास्त्रों में वर्णन आता है कि सुबाहकुमार को दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् स्थविर महाराज के पास ज्ञान-प्राप्ति के लिये बैठाया गया । आपको जानने की जिज्ञासा होगी कि स्थविर किसे कहते हैं ? संस्कृत भाषा में 'स्थविर' का अर्थ है 'वृद्ध' । 'हमारे ठाणांग (स्थानांग) सूत्र में तीन प्रकार के स्थविर बताए गये हैं-वयस्थविर, दीक्षा स्थविर और सूत्रस्थविर । For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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