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________________ ११६ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग ऐसे मूढ़ व्यक्तियों के लिए क्या कहा जाए ? जो अपनी आत्मा को ही इस प्रकार धोखा देते हैं उन्हें समझाना बड़ा कठिन कार्य है । भगवान् महावीर ने तो स्पष्ट कहा है-- दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेण वि सम्मपाणिणं । गाढा य विवाग कम्मुणो, समयं गोयम ! मा पमायए । -उत्तराध्ययन सूत्र १०-४ अर्थात्-हे गौतम ! सब प्राणियों के लिए मनुष्यभव चिरकाल तक भी दुर्लभ है । दीर्घकाल प्रतीत होने पर भी उसकी प्राप्ति होता कठिन है । क्यों कि कर्मों के फल बड़े गढ़े होते हैं, अतः समय मात्र का भी प्रमाद मत करो। यह चेतावनी केवल गौतम स्वामी के लिए ही नहीं थी अपितु मनुष्य मात्र के लिए है। अगर हम गंभीरता पूर्वक विचार करें तो सहज ही सोच सकते हैं कि आगामी भव में मनुष्य जन्म उन व्यक्तियों का हो भी कैसे सकता है, जो लोग इस जीवन को विषय-भोगों का उपभोग करने में तथा नाना प्रकार के पापों द्वारा अर्थ-संचय करने में ही व्यतीत करते हैं। उनकी तो वही दशा होगी जो एक कवि ने बड़े कठोर शब्दों में बताई है । कहा है :योंही जन्म खोयो, माया वाद में विगोयो कबहुं न सुख सोयो भयो विष ही को वाट को। दया धर्म कोनो नाही, हरि रंग भीनो नाही, साधन को चीन्यो नाहीं करी पुण्य पाप को। लोक में न यश परलोक ते न वश शुक, तन उर धार्यो न खवैया बन्यो काट को। कहत गुपाल नर देह को जनम पाय, धोबी को सो कुत्तो भयो घर को न घाट को। तो ऐसा व्यक्ति जो अपने सम्पूर्ण जीवन को मोह-माया में फंसाकर खो देता है तथा सांसारिक पदार्थों में आसक्त रहकर उनके लिए हाय-हाय करते हुए बिता देता है। कभी भी सुख से सो नहीं पाता, वह धर्माराधन से वंचित रह जाता है । ऐसा व्यक्ति जो आत्म-मुक्ति के साधनों को नहीं पहचान पाता और पुण्य-पाप के भेद को नहीं जानता वह न इस लोक में यश का भागी बनता है और न ही आगामी भव में देवगति या मनुष्य गति ही प्राप्त कर पाता है । इसीलिये कवि कहता है कि वह धोबी के कुत्ते के समान न इधर का रहता है और न उधर का ही । उसके इहलोक-परलोक दोनों ही बिगड़ते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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