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तपो हि परमं श्रेयः
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किनारे पर ही खा रहा था पर धूर्त सियार उससे बोला-"यह क्या मामा ? किनारे पर तो सब पेड़ खाए हुए और खाली हैं, खेत के बीच में चलो! असली आनन्द चने खाने का वहीं आएगा।" भानजे की प्रेरणा से मामा जी खेत के बीच में पहुंच गए और चने खाने लगे।
थोड़ी ही देर में सियार का पेट भर गया क्योंकि उसका पेट छोटा था, किन्तु ऊँट का कैसे भरता अतः वह खाता रहा । सियार के मन में कुटिलता तो थी ही, मन में कपट रखकर ही वह ऊँट को लाया था अतएव बोला___ "मामाजी! मेरी आदत है कि मुझे खाने के बाद भौंकनी आती है अर्थात् भौंकने की इच्छा हो जाती है । इसीलिए मैं तो भौंकता हूँ।"
ऊँट ने घबराकर कहा-"भाई चिल्लाने की कौन-सी जरूरत आ पड़ी है ? तुम चिल्लाओ मत, चुप रहो । अन्यथा लोग मुझे पकड़ कर मारेंगे ।"
यही तो सियार चाहना था। उसने जोर-जोर से हुआँ-हुआं करके चीखना शुरू किया और कुछ मिनटों के पश्चात् वहां से नौ-दो ग्यारह हो गया । सियार की आवाज सुनते ही खेत का मालिक दौड़कर आया और ऊँट को पकड़कर उसकी खूब पूजा की। बेचारा ऊँट पिट-पिटाकर अपना सा मुंह लेकर लौटा । कई दिन तक मार खाने के कारण उसका शरीर दर्द करता रहा।
पर धोखा खाकर ऊँट बड़ा दुःखी हुआ और लगता है कि उसकी दशा पर तरस खाकर विधाता भी उसके गूढ़ मगज में कुछ बुद्धिस गया । अत: वह सोचने लगा कि मुझे सियार को उसके कपट करने का फल चखाना चाहिए। इसके लिए वह मौका ढूढने लगा और सफल भी हुआ
ऊँट मामा दाव राखी भाणेजा को एक दिन,
कहे गोठ कीजे एक खेत आछो पायो है। मानी मनवार चाल्या मारग में आई नदी,
कैसे पार पोचूं जल अधिक भरायो है । पीठ पे बिठायो ऊँट आयो मझधार कहे,
भाणेजा जी म्हाने तो लोटणवाय आयो है । कह अमोरिख मझधार में बह्यो है श्याल,
कपट किया सू जीव दुःल ऐसो पायो है ।
हुआ यह कि एक दिन दाव पाकर ऊँट ने भी सियार से बदला लेने की योजना बनाई और उसके पास आकर प्रेम से बोला-"प्यारे भानजे ! आज मैंने भी एक बड़ा अच्छा खेत ढूढा है । चलो न, वहाँ चलकर अपन मामाभानजे गोठ करें। बड़ा आनन्द आएगा ।"
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