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भद्रबाहु - चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
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रानी स्वामिनी की पुत्री जधिखल का करहाटपुर के राजा के साथ विवाह | उनकी प्रेरणा से कुछ साधु निर्ग्रन्थपना स्वीकार कर लेते हैं । इसी से वलियसंघ ( यापनीयसंघ ? ) की उत्पत्ति हुई । विशाखनन्दी के शिष्यों द्वारा श्रुतांग- लेखन एवं श्रत पंचमी पर्वारम्भ।
( रानी जक्खिल ने पुनः उस साधु-समूह को समझाया कि - ) - " हे स्वामिन्, अब आप लोग निर्ग्रन्थ बन जाइए और इस नगर में निवास कीजिए । " ( पहले तो ) उस साधु-समूह ने उसके कथन की अवहेलना की, किन्तु कुछ ही क्षणों के पश्चात् उसे हितकारी मानकर स्वीकार कर लिया ।
तभी से एक प्रमादी ( नवीन ) मत और उत्पन्न हुआ, जो जावलिय ( यापनीय ? ) संघ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और इस प्रकार वह एक प्रवर गच्छ के रूप में प्रचलित हुआ । वे जावलिय अपनी-अपनी इच्छानुसार विचरण करने लगे ।
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इधर ऋषिवर विशाखनन्दी के तपोबल से गरिष्ठ पुष्पदन्त एवं भूतबलि नाम के दो शिष्य हुए, जो प्रवचनांगों ( द्वादशाङ्ग - वाणी ) का अर्थ करने में प्रधान थे । " आगे चलकर लोग तुच्छ बुद्धिवाले होंगे । वे एक-एक अक्षर बारबार ( कठिनाईपूर्वक ) घोखेंगे ( पढ़ेंगे )”, यह जानकर उन शिष्यों ने अपने हाथों से श्रुतांगों को लिखकर पोथी के रूप में उन्हें चढ़ाया ( तैयार कर समर्पित किया ) ।
चूँकि पंचमी के दिन उन्होंने उस श्रुतांग (शास्त्र) को लिखा (पूर्ण क्रिया) था, अतः उसका विधान श्रुतपंचमी के नाम से किया गया ।
घत्ता - पंचमकाल में लोगों की एक सौ ( अर्थात् १२० ) की आधी धिक ) आयु हो जायगी ||२४||
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आयु क्षीण हो जायगी और बीस अधिक अर्थात् ६० वर्ष की उत्कृष्ट ( अधिका
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