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भद्रबाहु - चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
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वलभी- नरेश के साथ स्वामिनी का विवाह । उनके अनुरोध से उसके गुरुजन श्वेत वस्त्र धारण कर लेते हैं ।
- फिर, सोरठ (सौराष्ट्र ) देशान्तर्गत वलभीपुर के राजा के साथ विशेष रूप से उस स्वामिनी नामक कन्या का विवाह कराया गया । उस स्वामिनी रानी ने अपने पति के लिए उन साधुओं को अपना गुरु बताकर उन्हें अपने पति द्वारा ही निमन्त्रित कराया । ( गुरुओं के आगमन की सूचना मिलते ही उनके स्वागतार्थ - ) जब वे राजा-रानी आधे मार्ग में पहुँचे, तभी राजा ने अपनी प्रियतमा से कहा – “कम्बल एवं दण्ड ( डण्डा ) धारण किये हुए तथा सिर तुम्हारे गुरु ( साधु ) निश्चय ही गोपालक जैसे दिखाई दे रहे हैं । हैं और न वस्त्र ही पहने हुए हैं । हे प्रिये, इनका तो वन्दन ही
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मुड़ाये हुए ये
ये न तो नग्न अप्रशस्त है ।"
राजा का कथन सुनकर रानी ने उन साधुओं को प्रशस्त शुभ्र वस्त्र दान में दिये (और उन्हें पहना दिये ) । फिर जन - मनहारी महोत्सव के साथ उन्हें वलभीपुर में प्रविष्ट कराया। उनके आगमन से वहाँ बड़ी प्रभावना हुई । उसी समय से मायावी श्वेताम्बर-मत प्रचलित हुआ और लोगों में उसका प्रचार हुआ ।
रानी स्वामिनी के गर्भ से, गुणों से परिपूर्ण जक्खिल नाम की एक पुत्री उत्पन्न हुई । अपने रूप-सौन्दर्य से कामदेव को भी जीत लेनेवाली, उस जक्खिल का विवाह करहाटपुर के राजा के साथ कर दिया गया ।
उस जक्खिल रानी ने भी गुरुओं ( श्वेताम्बर - साधुओं ) को अपने यहाँ ( करहाटपुर में ) बुलवाया और अपने पति सहित अनुरागपूर्वक उनके सम्मुख गयी । उनके वेश को देखकर परम विवेकी राजा ने रानी से कहा - "ये तो पाखण्डियों का रूप धारण किये हुए दिखाई देते हैं । ये सभी कम्बल से सिर ढाँके हुए स्त्री के वेश में ( आये हुए ) हैं -
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घत्ता - "अतः लेशमात्र तपस्या नहीं करनेवाले इन साधुओं का प्रवेश मेरे नगर में मत कराओ ।" इस प्रकार आदेश देकर राजा अपने घर लौट गया । इधर ( राजा का कड़ा रूप देखकर ) रानी जक्खिल ने उन साधुओं से कहा और समझाया कि "आपका प्रवेश इस नगर में नहीं हो सकेगा ।"
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