________________
४०
भद्रबाहु - चाणक्य- चन्द्रगुप्त कथानक
[२०]
On the request of Muni Candragupta, Acārya Visakhanandi also takes up Kantāra-Carya and realising his achievement to be the effect of the severe penance (Tapasyā ) of Candragupta, he dispels his suspicion towards him and moves towards Paḍalipura with him.
वुट्टड वंभयारि तह खुल्लउ तहु कारण सो पुणु जा गच्छइ
तरुसाहहिँ भुल्लंतु कमंडलु आविवितिं गुरुहु पउत्तउ 5 णउ पुरु णउ घरु णउ ते सावय ताविसादि मुणिणा एहु पुण्णु पहावें पुरुवरु सच्चु-सच्चु तुहुँ परमजईसरु
७
सच्चु-सच्चु तुहुँ वयहु अभंगहु 10 सीसहु लोउ करिवि आलोयणु
पुणु सइँ गिहि संघहु दिण्णउ सयलहिँ तहुँ पडिवंदण दिण्णिय
Jain Education International
So
तेत्थु कमंडलु तेण जि भुल्लर । ता घरु पुरु तहिं किंपि ण पिच्छइ । दिट्ठउ गिण्हउ पूरिय वरजलु | अच्छरियउ मइँ दिट्टु णिरुत्तर । कत्थ गया फेडिह छुह-आवय । चंदगुत्ति संसिउ गया । मह अडविहिँ कि देविहिँ सुहयरु । सच्चु सच्चु [तह] गुरु भक्त्तीयरु | इम संसिवि तहु भट्टउ अग्गड | तासु जि दिण्णउ गुरुणा तहिँ खणु । जं अविरयहिँ असणु आण्णउ | पुणु तत्थहु चल्लिय तव - किण्णिय ।
घत्ता
पाडलिपुर पत्तउ संघें जुत्तर रिसि विसाणणंदी सवणु । सावयहिँ अतुच्छउ विहिउ महुच्छउ संठिउ जा आणि सगुणु ||२०||
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org