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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
[१५] Muni Candragupta has to face Antarāyas Chinderances
in taking food as per principle) on account of available food articles which were against canons, However, from the 4th day he starts
getting prescribed pure food.
कंकण-कडय-विहूसिय णियकरु दक्खालइ छहरस चट्टइ धरु । मुणिवरु तं पिच्छिवि चिंतइ मणि एहु अजुत्तु ण गिण्हइ बहुगुणि । गउ बाहुडि अलाहु मुणेप्पिणु गुरुहुँ तं जि अक्खिउ पणवेप्पिणु । पच्चक्खाणु लेवि सो संठिउ __अण्णहिँ दिणि वण-भमणुक्कंठिउ । 5 अवरहिं दिसि संपत्तउ जामहिं सिद्ध रसोइ दिट्ठ तिं तामहि ।
णाणाविह रसवत्तिहिँ जुत्ती विणु जुवतीए तेण खणि चिंती। हुय अलाहि गुरु आसमि आयउ तं असेसु रिसि पुरु अभिवायउ । मुणिणा भव्वु-भव्वु तहु वुत्तउ ठिउ उववासिं पुणु जि पवित्तउँ ।
अवरदिसहिँ गउ अण्णहिँ वासरि एक्कलिय तिय दिहि वणंतरि । 10 करिकर वद्धंजलि पुणु धरप्पिणु पडिगाहइ ठा-ठाहु भणप्पिणु ।
तं पि अजुत्तु मुणिवि णिरु चत्तउ जाइवि ति णियगुरुहुँ पउत्तहु । रिसि जंपइ तव पुणि संजाया पइँ अभंग रक्खिय वयछाया। तुरियइँ दियसि अवरदिसि पत्तउ भिक्खाकारणि णिम्मल-चित्तउ ।
णयरु एक्कु तिं तत्थ जि दिट्ठउ गोउर-पायारेहिँ मणिट्ठिउ । 15 जिणहर-चउहदे॒हिं रवण्णउ तत्थ पइट्टउ सवणु रवण्णउ ।
सावय दारापेहण थक्कै चंदगुत्ति पडिगाहिउ एक्के।
घत्ताविहिपुठवें मुणिवरु सुरकरिकरवरु चरिय करिवि संपत्त लहु । णियगुरुहुँ जि भासि उ सयल पयासिउ णयरु इक्कु इत्थ जि पहु ॥१५॥
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