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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
[११] Interpretation of sixteen dreams by Acārya
Bhadrabāhu.
चंदगुत्तिराएँ सुयकेवलि जाइ वणंतें पुच्छिउ गयमलि। सिविणय-फलु महु अक्खहि सामिय अट्ठणिमित्तणाणपहगामिय । तं णिसुणेवि महामुणि भासइ भावकालपरिणइ सुपयासइ । दिणयरु अत्थवणे पुणु केवलु णाणत्थवणु हवेसइ गयमलु । 5 अवहि-मणह-पज्जय खउ होसइ रवि-अत्थवणहुँ एहु फलु पोसइ।
कप्पद्दुम-साहाहिँ जि भंगे णिववुद्देसहिँ संपय संगे छंडिवि रज्जु ण तउ गिणेसहिँ परलच्छीसंगहणु करेसहिँ। जं वाहुडिउ विमाणु णहंगणि तं णउ एसहि इह चारण-मुणि ।
देवाहँ वि आगमणु णिसिद्धउ पंचमकालि गरेस पसिद्धउ । 10 अहि-बारह-फण-जुउ जं दिट्ठउ दोदह-वरिस-दुकाल जि सिट्ठउ ।
चंदहु मंडल भेएँ णिव मुणि जिणदंसणहो भेय होसहि जणि ।
घत्ताजं जुझंता पइँ किण्हकरि दिट्ठ तं घणमाला इह । विरला वरिसेसइ धरवला णिव णेसइ वज्जग्गि-सिहा ॥११॥
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