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भद्रबाहु - चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
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परिवर्तित आसन देखकर चाणक्य राजा नन्द से क्रुद्ध होकर चन्द्रगुप्त के साथ प्रत्यन्तवासी शत्रु राजा ( पुरु ? ) से जा मिलता है और उसकी सहायता से राजा नन्द को समूल नष्ट कर चन्द्रगुप्त को पाटलिपुर का राजा बना देता है । चन्द्रगुप्त की वंश-परम्परा ।
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- " मेरे भोजन का आसन क्यों चला ( बदल ) दिया ? किसने ( स्वर्णासन के स्थान पर) बाँस का यह आसन रख दिया है ?" (यह सुनकर ) शकट मन्त्री ने कहा कि" राजा नन्द के विशेष आदेश से ही तुम्हारे आसन को बदल दिया गया है ।" शकट ने उसे मध्यवर्त्ती आसन पर बैठने को कहा । तब चाणक्य ने कुछ दिनों तक उसी पर बैठकर भोजन किया और पुनः जब उस आसन को भी चलायमान कर दिया गया ( बदल दिया गया ), तब वह चाणक्य अपने मन में अत्यन्त क्रुद्ध हो उठा । वह लोगों के सम्मुख यह कहता हुआ वहाँ से निकला कि" मेरी कुटी में जो अग्नि सिलग उठी है, उसे हे अभागे नन्द राजा, वह सब मैं तुझे सौंपता हूँ ।" इस प्रकार चिल्लाता हुआ वह चाणक्य राजा नन्द के भवन की ओर दौड़ा। उसके वचनों को सुनकर शत्रुजनों को नष्ट करने में पटु चन्द्रगुप्त नामक कोई वीर योद्धा उस चाणक्य के पीछे लग गया । (पुनः) वे दोनों (चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त ) मिलकर प्रचुर सहायता माँगने हेतु सीमान्त निवासी अरिराज ( पर्वत या पुरु ? ) के समीप गये । अपने अपमान का बदला लेने में चतुर उस चाणक्य ने खून को खौलाकर ( अर्थात् प्रचण्ड क्रोध से भरकर ) समरभूमि में राजा नन्द को उखाड़ - कर ( पराजित कर ) चन्द्रगुप्त को ही पाटलिपुर का राजा बना दिया | चन्द्रगुप्त ने भी उस चाणक्य को अपना प्रधान ( - मन्त्री या सेनापति ) बना लिया |
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उस सुप्रसिद्ध राजा चन्द्रगुप्त का बिन्दुसार नामक का पुत्र उत्पन्न हुआ । पुनः उस बिन्दुसार का भी अशोक नामक पुत्र हुआ । पुनः उस अशोक का भी विनयशील नकुल नामका पुत्र उत्पन्न हुआ । नृप अशोक अपने ऐरावत हाथी के अन्वित कर शत्रु के ऊपर
समान हाथी को सजाकर तथा पल्लाण ( हौदा ) से आक्रमण करने के लिए चला गया । उसने ( अर्थात् राजा अशोक ने समर - भूमि से ) अपने नगर में एक लेख ( - पत्र ) भेजा ( और उसमें लिखा ) कि - " पुत्र को अक्षर सीखने हेतु निर्दोष मति देकर शाला में भेजो ( उसे उपाध्याय से पढ़वाओ ) । मेरे इस आदेश का शीघ्र ही पालन किया जाय ।" लेख ( - पत्र ) को विपरीत ( उल्टा ) बाँच ( पढ़ ) लिया गया ( - नकुल ) के दोनों नेत्र फोड़ दिये गये ।
घत्ता - शत्रु को जीतकर जब राजा अशोक घर वापिस लौटा पुत्र ( नकुल ) को गतनयन (अन्धा ) एवं उदास देखा तो उसने प्रकट किया और उसने उसका परिणय- संस्कार करा दिया ॥९॥
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अशोक के उस और उस पुत्र
और अपने बड़ा शोक
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