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प्रस्तावना बौद्ध-परम्परा के महाबोधिवंश में नन्द राजाओं की संख्या ९ बतलाई गयो है तथा उनके नाम इस प्रकार बतलाये गये हैं-(१) उग्रसेन (२) पण्डुक (३) पण्डुगति, (४) भूतपाल (५) राष्ट्रपाल (६) गोनिशांक (७) दाससिद्धक (८) कैवर्त एवं (९) धन।
__ महावंश के अनुसार अन्तिम राजा धननन्द का यह नाम उसके धन-लोलुपी होने के कारण पड़ा। ग्रीक इतिहासकार कटियस ने इसका अग्रमीज के नाम से उल्लेख किया है । धन ने ८० कोटि धन गंगानदी के गड्ढे में सुरक्षित किया था । चमड़ा, गोंद, पत्थर तथा अन्य व्यापारिक वस्तुओं पर भी उसने चुंगी (कर) लगाकर धन एकत्र किया था और उसको आय को पृथक्-पृथक् रूप से सुरक्षित रखने की व्यवस्था भी की थी।
राज्यकाल के विषय में महावंश में लिखा है कि कालाशोक के १० पुत्रों के २२ वर्षों तक राज्य करने के बाद नव-नन्दों ने भी २२ वर्षों तक राज्य किया और अन्तिम धननन्द का चाणक्य ने नाश किया।
जैन-परम्परा में नन्दों के शासनकाल की चर्चा तो मिलती है, किन्तु सभी नन्दराजाओं के नामों के उल्लेख नहीं मिलते। उसके अनुसार नन्दराजाओं ने मगध जैसे एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। हाथीगुम्फा के ऐतिहासिक जैन शिलालेख से यह भी सिद्ध है कि उन्होंने कलिंग को भी मगध का एक अंग बना लिया था।
नन्दों की जाति एवं धर्म
नन्दवंश किस जाति का था तथा वह किस धर्म का अनुयायी था, इस विषय में विविध मान्यताओं की चर्चा पूर्व में हो चुकी है। वैदिक पुराणों में उसे शूद्रगर्भोद्भव बतलाया गया है और जैनाचार्य हेमचन्द्र ने उसे नापितपुत्र कहा है। ग्रीक लेखक कटिंयस ने भी आचार्य हेमचन्द्र का समर्थन करते हुए लिखा है कि-"उस अग्रमीज (धननन्द ) का पिता वस्तुतः नाई था और उसके
१. दे० Age of Imperial Unity P. 31. २. नाहर-प्राचीन भारत पृ० २२३ । ३. वही. पृ० २२१ । ४. खारवेल शिलालेख पंक्ति संख्या १२ । ५. परिशिष्टपर्व ६२४४ । . Mccrindale-The Invasion of India by Alexander
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