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________________ टिप्पणियां १०७ भ० महावीर के परिनिर्वाण के ३ वर्ष ८ माह एवं १५ दिन के बाद उक्त काल का प्रारम्भ हुआ। इसमें क्रमशः २१ फल्कि राजा होते हैं, जो प्रजाजनों को अनेक प्रकार के कष्ट देते रहते हैं। इस काल में प्रारम्भ में मनुष्यों की अधिक से अधिक आयु १२० वर्ष की होती है, जो बाद में क्रमशः घटती जाती है। २५।२ कक्की ( कल्कि-राजा)-महकवि रहधू के अनुसार चतुर्मुख नामक इस कल्कि राजा ने प्रजाजनों एवं श्रमण-साधुओं पर घोर अत्याचार किये । उसके इस दुष्ट कार्य से क्रोधित होकर किसी व्यन्तरदेव ने उसे मार डाला। तब उसका पुत्र अजितंजय उसका उत्तराधिकारी बना। तिलोयपण्णत्ति के अनुसार महावीर निर्वाण के १.०० वर्षों के बाद पृथक्पृथक् एक-एक कल्कि तया ५०० वर्षों के बाद एक-एक उपकल्कि राजा होंगे, इस प्रकार २१ कल्कि और २१ उपकल्कि राजा होंगे, जो अपने दुष्ट कर्मों के कारण नरक में उत्पन्न होंगे । तत्पश्चात् ३ वर्ष ८ माह एवं १५ दिन व्यतीत होने पर छठा दुषमा-दुषमा काल प्रारम्भ होगा। राजनैतिक इतिहास में कल्कि नाम के किसी भी राजा का उल्लेख नहीं मिलता। इतिहासकारों की भी ऐसी मान्यता है कि भारतवर्ष में कल्कि नाम का कोई राजा नहीं हुआ। उनको ऐसी धारणा है कि भारतवर्ष में गुप्त सम्राटों के बाद 'हूण' नामकी एक जंगली बर्बर जाति ने लगभग १०० वर्षों तक राज्य किया था। उसमें ४ राजा हुए और सभी अत्यन्त दुष्ट, नीच एवं प्रजाजनों पर अत्याचार करते रहे। जैन-साहित्य में कल्कि नामक राजाओं के उल्लेख मिलते हैं और उनके विषय में बताया गया है कि सामान्य प्रजाजनों के साथ-साथ जैन-साधुओं पर भी वे अत्याचार करते थे। उनके भोजन पर भी उन्होंने 'कर' लगा दिया था। इस प्रकार का प्रचुर वर्णन गुप्तकालीन एवं परवर्ती जैन-साहित्य में उपलब्ध है। भारतीय राजनैतिक इतिहास एवं जैन-साहित्य के कल्कि सम्बन्धी तथ्यो का तुलनात्मक अध्ययन करने से ऐसा प्रतीत होता है कि भले ही कल्कि नाम का राजा न हुआ हो, किन्तु उस काल में जो भी राजा हुए वे अत्यन्त दुष्ट थे। अतः प्रजा-विरोधी अपने अत्याचारी दुर्गुणों के कारण वे कल्कि ( या कलंकी ?) नाम से प्रसिद्ध हो गये। कहते हैं कि इन्होंने लगातार १०० वर्षों तक राज्य किया था। तिलोयपण्णत्ति (-त्रिलोकप्रज्ञप्ति-४-५वीं सदी ईस्वी ) नामक ग्रन्थ के अनुसार वीर निर्वाण संवत् ९५८ ( अर्थात् ४३१ ईस्वी ) में गुप्त साम्राज्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004003
Book TitleBhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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