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टिप्पणियां
उक्त नन्दवंश में नौ राजा हुए, जो नवनन्द के नाम से प्रसिद्ध हैं । कुछ इतिहासकार नव का अर्थ ९ (नौ) करते हैं, किन्तु डॉ० के० पी० जायसवाल के अनुसार नव का अर्थ नवीन है । उनके मतानुसार नन्दवंश में ९ राजा नहीं हुए, प्रत्युत महापद्मनन्द नामक शूद्र राजा नवीन नन्दवंश का था, जो पूर्व के नन्दोंनन्दिवर्धन और महानन्दि से भिन्न था। नये नन्द राजा ने पूर्व- नन्दों को मारकर उनसे मगध का राज्य छीन लिया था और नये नन्दवंश की स्थापना की थी । सिकन्दर के आक्रमण के समय महापद्मनन्द का पुत्र धननन्द मगध का सम्राट् था, जिसे मारकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने ई० पू० ३७२ के आस-पास उसका राज्यसिंहासन प्राप्त किया था । ( विशेष के लिए प्रस्तावना देखिए ) ।
५।४ सयडु मंती (शकट मन्त्री ) - पाटलिपुर के राजा नन्द का मन्त्री, जो भारतीय इतिहास में शकटाल के नाम से प्रसिद्ध है । जैन स्रोतों के अनुसार जैनाचार्य स्थूलभद्र इसी शकटाल का पुत्र था । गुलजारबाग, पटना में इनका स्मृतिचिह्न अभी भी उपलब्ध है । बृहत्कथाकोष, पुण्याश्रवकथाकोष तथा आराधना कथाकोष में शकटाल की विस्तृत जीवन कथा वर्णित है । आराधनाकथाकोष के अनुसार शकटाल के साथ वररुचि भी राजा नन्द का मन्त्री था ।
७।६ भोयणसाला (भोजनशाला ) – विशाल राज्यों में महत्त्वपूर्ण अतिथियों के लिए राज्य की ओर से सर्व सुविधासम्पन्न भोजनागार की व्यवस्था रहती थी । इस प्रकार के भोजनागार की योजना मगध के राजाओं की अपनी विशेषता थी । अतिथियों के व्यक्तित्व के अनुसार वहाँ स्वर्णासन, रजतासन, कंसासन, काष्ठासन आदि पर बैठाकर उन्हें भोजन कराया जाता था । सम्राट् अशोक के प्रथम शिलालेख में भी राजकीय भोजनागार की चर्चा आयी है । सुविधाओं की दृष्टि से इस भोजनागार की तुलना वर्तमान के 'अशोका होटल', ताज होटल, or three Stars Hotels से की जा सकती है |
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८२ चाणक्क - ( चाणक्य ) - प्राचीन भारतीय राजनीति एवं अर्थनीति के निर्धारण में चाणक्य का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । वैदिक, बौद्ध एवं जैनसाहित्य में उसे दृढ़निश्चयी, दृढ़प्रतिज्ञ एवं हठी ब्राह्मण के रूप में चित्रित किया गया है । उसके जीवन चरित के विषय में वैदिक-साहित्य में तो अन्तर मिलता ही है, जैन - साहित्य में भी विविध कथाएँ मिलती हैं । इनकी चर्चा प्रस्तुत पुस्तिका की भूमिका में की जा चुकी है । विशेषता यही है कि जैन साहित्यकारों ने चाणक्य के उत्तरार्ध - जीवन की भी चर्चा की है, जिसे जैनेतर - साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण पूरक सन्दर्भ माना जा सकता है ।
चाणक्य का अपर नाम कोटिल्य भी माना जाता है । उसने अपने शिष्य एवं
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